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कर्म - विज्ञान : कर्म का अस्तित्व (१)
'विलियम जेम्स सिदिस' ने अपनी विलक्षणता से सारे अमेरिका में तहलका मचा दिया। दो वर्ष की आयु में वह धड़ल्ले से अंग्रेजी बोलता,. पढ़ता और लिखता था । ८ वर्ष की आयु में उसने ग्रीक, रूसी आदि ६ विदेशी भाषाओं का ज्ञान अर्जित कर लिया। ग्यारह वर्ष की आयु में उसने देश के मूर्धन्य विद्वानों की सभा में उस समय तक प्रचलित 'तीसरे आयाम' की बात से हटकर 'चौथे आयाम' की सम्भावना पर विलक्षण व्याख्यान दिया ।
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'लार्ड मैकाले' भी दो वर्ष की आयु में पढ़ने लगे थे। ७ वर्ष की आयु में 'विश्व इतिहास' लिखना प्रारम्भ किया और कितने ही अन्य शोधपूर्ण ग्रन्थ लिखे। उन्हें उस युग में बिना किसी सहायक ग्रन्थ के स्वयं की स्मरणशक्ति के आधार पर 'विश्व इतिहास' लिखने के कारण 'चलती फिरती विद्या' कहा जाता था । '
बहुत ही छोटी उम्र में असाधारण प्रतिभाओं का उदय होना, पुनर्जन्म का प्रामाणिक आधार है। मनुष्य का स्वाभाविक विकास एक आयुक्रम के साथ जुड़ा हुआ है। कितना ही तीव्र मस्तिष्क क्यों न हो, उसे सामान्यतया क्रमबद्ध प्रशिक्षण की आवश्यकता रहती है। यदि बिना किसी प्रशिक्षण या उपयुक्त वातावरण के छोटे बालकों में असाधारण विशेषताएँ देखी जाएं तो पूर्वजन्मों के उनके संग्रहीत ज्ञान को, विशेषतः ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम को ही कारण मानना पड़ेगा। भगवान् महावीर ने भी भगवतीसूत्र में यही बताया है कि "ज्ञान इहभविक है, परभविक भी है और इस जन्म, पर- जन्म तथा आगामी जन्मों में भी साथ जाने वाला है । " अतः पूर्वजन्म या जन्मों में अर्जित किये हुए ज्ञान और ज्ञानावरणीयकर्मक्षयोपशम के संस्कार उन उन जीवों के साथ इस जन्म में भी साथ चले आते हैं। इस जन्म में उन बालकों में असमय में उदीयमान प्रतिभाविलक्षणता का समाधान पूर्वजन्म और पुनर्जन्म को माने बिना कथमपि नहीं हो सकता ।
पूर्वी जर्मनी का तीन वर्ष का विलक्षण प्रतिभासम्पन्न बालक 'होमेन 'केन' 'मस्तिष्क विज्ञान' के शोधकर्त्ता विद्वानों के लिए आकर्षण केन्द्र रहा है।
१. अखण्डज्योति जून १९७४ के लेख से, पृ. ३१-३२
२. (क) अखण्डज्योति, जुलाई १९७४ से सार-संक्षेप पृ. १३
(ख) (प्र.) भंते! इहभविए नाणे, परभविए नाणे, तदुभयभविए नाणे ?"
(उ.) गोयमा ! इह भविए वि नाणे, परभविए वि नाणे, तदुभयभविए वि नाणे।"
- भगवतीसूत्र
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