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सुत्तविभंग में दोषों का निरूपण है। उन नियमों के उल्लंघन का भी उल्लेख है जिन्हें भिक्षु प्रत्येक महीने की अमावस्या और पूर्णिमा के दिन स्मरण करता था। इसे दूसरे शब्द में प्रातिमोक्ष भी कहा जाता है। भिक्षु और भिक्षुणी की दृष्टि से प्रातिमोक्ष के दो विभाग हैं। इनमें भिक्षु और भिक्षुणी के द्वारा नियमोल्लंघन का वर्णन है। जब प्रातिमोक्ष का पाठ प्रारम्भ होता है तब उनमें जिन-जिन अपराधों का वर्णन आता है, उन अपराधों में से सभा में उपस्थित भिक्षु और भिक्षुणी ने जो-जो अपराध किये हैं, वे भिक्षु और भिक्षुणी अपने स्थान से खड़े होकर उन अपराधों को स्वीकार करते हैं। अपराध स्वीकार करने के पीछे यही उद्देश्य रहा हुआ है कि भविष्य में वह पुन: इस प्रकार के अपराध की पुनरावृत्ति नहीं करेगा। मझिमनिकाय में तथागत बुद्ध ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि प्रातिमोक्ष कुशलधर्मों का आदि है अर्थात् मुख है।' प्रातिमोक्ष शब्द पर टीका करते हुए एक आचार्य ने लिखा है कि जो उस प्रातिमोक्ष की रक्षा करता है, उसके नियमों का परिपालन करता है, वह (प्रातिमोक्ष) उसे अपाय असद्गति आदि दुःखों से मुक्त करता है अत: वह प्रातिमोक्ष है।
खन्धक भी दो भागों में विभक्त है ? एक महावग्ग और दूसरा चुल्लवग्ग । भिक्षु का संघीय जीवन किस प्रकार का होना चाहिए, उसे किन-किन नियमों का पालन करना चाहिए, यह महावग्ग में वर्णन है। सुत्तविभंग में मुख्य रूप से निषेधात्मक शैली है तो महावग्ग में विधेयात्मक शैली है । उपसम्पदा, वर्षावास, प्रातिमोक्ष (पातिमोक्खं), प्रवारणा, चिवररंगना आदि विधि क्रम और नियमों का विस्तार से वर्णन है।
चुल्लवग्ग में दौनन्दिन अर्थात् प्रतिदिन क्या करने योग्य है ? क्या करने योग्य नहीं है ? किस प्रकार चलना, किस प्रकार बोलना आदि का विवेचन है। इसके अतिरिक्त बौद्ध इतिहास की अनेक महत्त्वपूर्ण घटनाओं का भी संकलन है।
प्रारम्भ में विनयपिटक में वर्णित विषयों की अनुक्रमणिका दी गई है।
तथागत बुद्ध ने अपने प्रधान शिष्य आनन्द को कहा था कि छोटी-छोटी गलतियों को क्षमा कर दिया जाय पर प्रानन्द बुद्ध से यह पूछना भूल गये कि छोटी-छोटी गलतियां कौन-सी हैं ? तथागत बुद्ध के निर्वाण के पश्चात संघ विच्छिन्न न हो जाय, धर्मसंघ की मर्यादा को अक्षुण्ण रखने की दृष्टि से प्रथम बौद्धसंगति में कठोर नियमों का गठन किया गया । इसका मूल उद्देश्य भिक्षु-भिक्षुणी बुरे कार्यों से दूर रहेंगे । बौद्धसंघ में दो प्रकार के दण्ड थेकठोर दण्ड और नरम दण्ड । कठोर दण्ड में पाराजिक एवं संघादि शेष दण्ड आते थे। यह दुठ्ठलापत्ति, गरुकापत्ति, अदेसनागामिनी आपत्ति, थल्लवज्जा आपत्ति, अनवसेसापत्ति विविध नामों से जाना और पहचाना जाता है।
नरम दण्ड, इसमें पूर्वापेक्षया नरम दण्ड दिया जाता है। इसे अदु?ल्लापत्ति, लहुकापत्ति, अथल्लवज्जा आपत्ति, सावसेसापत्ति, देसनागामिनी आपत्ति आदि नामों से जानते-पहचानते हैं
यहाँ यह एक विशेष रूप से बात स्मरण में रखनी होगी कि जैन परम्परा में हर स्थान पर भिक्षु और भिक्षणी निग्गन्थ या निग्गन्थिनी के लिए विभिन्न प्रायश्चित्तों का विधान है और इसी प्रकार बौद्ध परम्परा में भी दोनों के लिए अलग-अलग विधान है । बौद्ध संघ में भिक्खपाति मोक्ख और भिक्खुनीपाति मोक्ख ये दो विभाग हैं। भिक्खुपाति मोक्ख के नियमों की संख्या अधिक है। वर्तमान में हमारे सामने भिक्खपाति मोक्ख के सम्बन्ध में ग्रन्थ उपलब्ध न होने से भिक्खनीपाति मोक्ख के आधार से ही यहां चर्चा कर रहे हैं। १. पातिमोक्खं ति आदिमेतं मुखमेतं पामुखमेतं कुसलानं धम्मानं तेन वुच्चति पातिमोक्खं ति ।
-गोपक मोग्गलानसूत्त मञ्झिमनिकाय ३।११८
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