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[निशीयसूत्र
१८. चिरल्ल, १९. हंस, २०. मयूर, २१. तोता, इन पशु-पक्षियों के पोषण करने वाले अर्थात् इनको पालने वालों या रक्षण करने वालों के लिये निकाला हुआ अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है ।
२४. जो भिक्षु शुद्धवंशज, राज्यमुद्राधारक मूर्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजाओं के (१-२) अश्व और हस्ती को विनीत अर्थात् शिक्षित करने वाले के लिए (३-४) अश्व और हस्ती को फिराने वालों के लिए (५-६) अश्व और हस्ती को आभूषण, वस्त्र आदि से सुसज्जित करने वालों के लिए तथा (७-८) अश्व और हस्ती पर युद्ध आदि में प्रारूढ होने वालों के लिए अर्थात् सवारी करने वालों के लिए निकाला हुआ अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है।
२५. जो भिक्षु शुद्धवंशज राज्यमुद्राधारक मूर्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजाओं के- १. संदेश देने वाले, २. मर्दन करने वाले, ३. मालिश करने वाले, ४. उबटन करने वाले, ५. स्नान कराने वाले, ६. मुकुट आदि आभूषण पहिनाने वाले, ७. छत्र धारण कराने वाले, ८. चामर धारण कराने वाले, ९. प्राभूषणों की पेटी रखने वाले, १०. बदलने के वस्त्र रखने वाले, ११. दीपक रखने वाले, १२. तलवार धारण करने वाले, १३. त्रिशूल धारण करने वाले, १४. भाला धारण करने वाले, इनके लिये निकाला हुअा अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य आहार ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है।
२६. जो भिक्षु शुद्धवंशज राज्यमुद्राधारक मूर्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजाओं के- १. अंतःपुर रक्षक-कृत्रिमनपुंसक, २. अंतःपुर में रहने वाले जन्मनपुंसक, ३. अंतःपुर के द्वारपाल, ४. दंडरक्षक =अंतःपुर के दंडधारी-प्रहरी, इनके लिये निकाला हुअा अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है ।
२७. जो भिक्षु शुद्धवंशीय राज्यमुद्राधारक मूर्धाभिषिक्त क्षत्रिय राजा की- १. कुब्जा दासी (कुबड़े शरीर वाली), २. किरात देशोत्पन्न दासी, ३. वामन (छोटे कद वाली) दासी, ४. वक्र शरीरवाली दासी, ५. बर्बर देशोत्पन्न दासी, ६. बकुश देशोत्पन्न दासी, ७. यवन देशोत्पन्न दासी, ८. पल्हव देशोत्पन्न दासी, ९. इसीनिका देशोत्पन्न दासी, १०. धोरूक देशोत्पन्न दासी, ११. लाट देशोत्पन्न दासी, १२. लकुश देशोत्पन्न दासी. १३. सिंहल देशोत्पन्न दासी, १४. द्रविड़ देशोत्पन्न दासी, १५. अरब देशोत्पन्न दासी, १६. पुलिंद देशोत्पन्न दासी १७. पक्कण देशोत्पन्न दासी, १८. बहल देशोत्पन्न दासी, १९. मुरंड देशोत्पन्न दासी, २०. शबर देशोत्पन्न दासी, २१. पारस देशोत्पन्न दासी, इनके लिए निकाला हुअा अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है।
उपर्युक्त सूत्र कथित दोष-स्थानों का सेवन करने वाले को गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है। ..विवेचन-[ २१-२७ ] इन सात सूत्रों में वर्णित व्यक्तियों के लिये निकाला गया आहार ग्रहण करने में राजपिंड दोष और उससे सम्बन्धित अन्य अनेक दोष, अंतराय दोष या पुनः प्रारम्भ
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