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[निशीथसूत्र
यहाँ उन कदाग्रही भिक्षुओं को वन्दन करने का या उनकी प्रशंसा करने का प्रायश्चित्त नहीं कहा है, तथापि उसका प्रायश्चित्त समझ लेना चाहिए।
कदाग्रही या पार्श्वस्थ आदि के साथ अनेक प्रकार के सम्पर्कों का यद्यपि प्रायश्चित्त कहा गया है तथापि उनके साथ अशिष्ट या असभ्य व्यवहार करना साधु के लिए कदापि उचित नहीं है। ऐसा करना भी प्रायश्चित्त का कारण है।
गीतार्थ भिक्षु किसी विशेष प्रकार के लाभ का कारण जानकर या आपवादिक परिस्थिति में उन्हें आहार देना आदि व्यवहार कर सकता है । फिर उस कृत्य का यथोचित प्रायश्चित्त ग्रहण कर शुद्ध भी हो सकता है।
उपाश्रय में प्रवेश करने के बावीसवें प्रायश्चित्त सूत्र का भाष्य चणि में कोई निर्देश नहीं है। अतः मूल पाठ में किसी कारण से यह सूत्र बढ़ा हुआ प्रतीत होता है। उस सूत्र के पूर्व उपाश्रय के लेन-देन के दो प्रायश्चित्त सूत्र हैं । तीन सूत्र होने से यह अर्थ होगा कि-- उनके साथ एक उपाश्रय में नहीं ठहरना चाहिए तथा उनके उपाश्रय में जाना भी नहीं चाहिए। निषिद्ध क्षेत्रों में विहार करने का प्रायश्चित्त
२५. जे भिक्खू विहं अणेगाह-गमणिज्ज सइलाढे विहाराए संथरमाणेसु जणवएसु विहारवडियाए अभिसंधारेइ, अभिसंधारेतं वा साइज्जइ ।
२६. जे भिक्खू विरूव-रूवाई दसुयायतणाई अणारियाई मिलक्खूई पच्चंतियाई सइलाढे विहाराए संथरमाणेसु जणवएसु विहार-वडियाए अभिसंधारेइ अभिसंधारेतं वा साइज्जइ।।
२५. जो भिक्षु आहार आदि सुविधा से प्राप्त होने वाले जनपदों [क्षेत्रों] के होते हुए भी बहुत दिन लगें ऐसे लम्बे मार्ग से जाने का संकल्प करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है।
२६. जो भिक्षु आहारादि सुविधा से प्राप्त होने वाले जनपदों [क्षेत्रों] के होते हुए भी अनार्य, म्लेच्छ एवं सीमा पर रहने वाले चोर-लुटेरे आदि जहाँ रहते हों, उस तरफ विहार करता है या विहार करने वाले का अनुमोदन करता है । (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त प्राता है।)
विवेचन-आचा. श्रु, २ अ. ३ उ. १ में अनार्य क्षेत्रों में तथा अनेक दिनों में पार होने योग्य मार्ग में जाने का निषेध किया गया है तथा जाने पर आने वाली आपत्तियों का भी स्पष्टीकरण किया है और यह भी सूचित किया है कि संयमसाधना के योग्य क्षेत्र होते हुए ऐसे क्षेत्रों की ओर विहार नहीं करना चाहिए।
__अनार्य क्षेत्रों में विहार करने से वहाँ के अज्ञ निवासी मनुष्य क्रूरता से उपसर्ग करें तो भिक्षु अपने शरीर और संयम की समाधि में स्थिर नहीं रह सकेगा और मारणांतिक उपसर्ग होने पर आत्मविराधना एवं संयमविराधना भी होगी अतः भिक्षु को ऐसे क्षेत्रों में जाने की जिनाज्ञा नहीं है।
___आर्यक्षेत्र में जाने के लिये भी किसी मार्ग में ऐसी लम्बी अटवी हो कि जिसे पार करने में अनेक दिन लगें और मार्ग में आहार-पानी या मकान भी न मिले तो उस दिशा में विहार नहीं करना
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