Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 540
________________ [ निशीथसूत्र छेद प्रायश्चित्त भी उत्कृष्ट छः मास का होता है तथा तीन बार तक दिया जा सकता है उसके बाद मूल प्रायश्चित्त दिया जाता है । ४४०] यथा -- छम्मासोवरि जइ पुणो आवज्जइ तो तिष्णि वारा लहु चैव छेदो दायव्वो । एस अविसिट्टो वा तिष्णि वारा छल्लहु छेदो । अहवा - जं चैव तव तियं तं छेदतिय पि- मासब्भंतरं चउमासब्भंतरं, छम्मासभंतरं च, जम्हा एवं तम्हा भिण्णमासादि जाव छम्मासं, तेसु छिण्णेसु छेय तियं अतिक्कतं भवति । ततो वि जति परं आवज्जति तो तिग्णि वारा मूलं दिज्जति । --- चूर्णि भा. ४ पृ. ३५१-५२ इससे यह स्पष्ट होता है कि वर्धमान महावीर स्वामी के शासन में तप और छेद प्रायश्चित्त छः मास से अधिक देने का विधान नहीं है । अतः किसो भो दोष का छः मास तप या छेद से अधिक प्रायश्चित्त नहीं देना चाहिये । क्योंकि अधिक प्रायश्चित्त देने पर 'तेण परं इस सूत्रांश से एवं भाष्योक्त परम्परा से विपरीत आचरण होता है । मूल (नई दिक्षा) प्रायश्चित्त भी तीन बार दिया जा सकता है और छः मास का तप और छः मास का छेद भी तीन बार ही दिया जा सकता है । उसके बाद आगे का प्रायश्चित्त दिया जाता है । अन्त में गच्छ से निकाल दिया जाता है । प्रस्थापना में प्रतिसेवना करने पर श्रारोपण १५. जे भिक्खू चाउम्मासियं वा, साइरेग चाउम्मासियं वा, पंचमासियं वा साइरेग- पंचमासियं वा, एएस परिहारट्ठाणाणं अण्णयरं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा अपलिउंचिय आलोएमाणे ठवणिज्जं ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं । ofae वि पडिसेवित्ता, से वि कसिणे तत्थेव आरूहेयव्वे सिया । १. पुव्विं पडिसेवियं पुव्विं आलोइयं, २. पुव्विं पडिसेवियं पच्छा आलोइयं, ३. पच्छा पडिसेवियं पुव्विं आलोइयं, ४. पच्छा पडिसेवियं पच्छा आलोइयं, १. अपलिउंचिए अपलिउंचिय, २. अपलिउंचिए पलिउंचियं, ३. पलिउंचिए अपलिउंचियं, ४. पलिउंचिए पलिउंचियं, ... आलोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं साहणिय आरुहेयव्वे सिया, जे एयाए पट्टणाए पट्ठविए निव्विसमाणे पडिसेवेइ, से वि कसिणे तत्थेव आहेयव्वे सिया । १६. जे भिक्खू चाउम्मासियं वा, साइरेग चाउम्मासियं वा, पंचमासियं वा, साइरेगपंचमासयं वा, एएस परिहारट्ठाणाणं अण्णयरं परिहारद्वाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567