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बीसवां उद्देशक]
[४४९ वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से दो मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक बीस रात्रि की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त आता है । जिसे संयुक्त करने से पांच मास और दस रात्रि की प्रस्थापना होती है।
२९. पांच मास और दस रात्रि का प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से दो मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक बीस रात्रि की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त आता है । जिसे संयुक्त करने से छः मास की प्र
विवेचन-पूर्व के सूत्रों में वहन काल के भीतर लगे दो मास के प्रायश्चित्त स्थान की स्थापिता आरोपणा कही गई है उसी को वहन किये जाने वाले प्रायश्चित्त के पूर्ण कर लेने के बाद में अलग से वहन कराने की विधि इन सूत्रों में कही गई है और क्रमशः प्रस्थापना-प्रारोपणा वृद्धि की विधि बताई गई है।
इसमें पूर्व प्राप्त दो मास के प्रायश्चित्त को वहन कराते हुए पुन: दो मास के प्रायश्चित्त स्थान का सेवन एवं उसके सानुग्रह अारोपणा का वर्णन किया गया है।
क्रमशः प्रस्थापित करके दिये गये प्रायश्चित्त में पुनः पुनः सानुग्रह अारोपणा हो सकती है यह इन सूत्रों में कहा गया है । किन्तु स्थापिता आरोपणा प्रायश्चित्त में एक बार ही सानुग्रह आरोपणा होती है यह पूर्व छः सूत्रों में कहा गया है।
__. इस उद्देशक के पांचवें, दसवें, उन्नीसवें आदि सूत्रों में "तेण परं" शब्द का स्वाभाविक ही प्रसंग संगत अर्थ हो जाता है, किन्तु इन सूत्रों में "तेण परं" शब्द का सीधा अर्थ करना प्रसंग-संगत नहीं होता है क्योंकि यह प्रस्थापिता आरोपणा है और इसमें आगे से आगे प्रायश्चित्त दिन जोड़कर कुल छः मास तक का योग किया गया है ।
चूर्णिकार ने भी यही बताया है कि यहाँ क्रमशः पूर्व और पश्चात् के प्रायश्चित्त को जोड़ा गया है अत: इन सूत्रों में "तेण परं" शब्द से "जिसे संयुक्त करने पर" ऐसा अर्थ करना आवश्यक हो जाता है।
संभवतः इन सूत्रों में कभो लिपि दोष से पूर्व सूत्रों के समान पाठ बन गया होगा जिसका मौलिक रूप कभी उपरोक्त किये गये अर्थ का सूचक ही रहा होगा । क्योंकि इस सूत्रांश का चूर्णिकार ने भी उपरोक्त अर्थ ही किया है।
एक मास प्रायश्चित्त को स्थापिता प्रारोपणा
३०. छम्मासियं परिहारट्ठाणं पटुविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा-अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं तेण परं दिवड्डो मासो।
३१. पंच मासियं परिहारट्ठाणं पढविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता
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