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[निशीयसूत्र १९-२४
एक मास से लेकर छह मास तक किसी भी प्रायश्चित्त के वहनकाल में लगे दो मास स्थान की सानुग्रह स्थापिता आरोपणा बीस दिन को तथा पुनः उस स्थान की निरनुग्रह स्थापिता आरोपणा दो मास की एवं कुल दो मास और बोस दिन
की स्थापिता पारोपणा दी जाती है। २५-२९
स्थापिता आरोपणा के दो मास और बीस दिन के प्रायश्चित्त को वहन करते हुए पुनः-पुनः दो मास के प्रायश्चित्त की बीस-बीस दिन की प्रस्थापिता आरोपणा बढ़ाते
हुए छह मास तक की प्रारोपणा की जाती है । ३०-३५ सूत्र १९-२४ के समान सानुग्रह और निरनुग्रह स्थापिता आरोपणा जानना किन्तु
दो मास प्रायश्चित्त स्थान की जगह एक मास एवं २० दिन की प्रारोपणा की जगह
१५ दिन तथा दो मास बीस दिन की जगह डेढ़ मास समझना चाहिए। ३६-४४ सूत्र २५-२९ तक के समान प्रस्थापिता प्रारोपणा जानना किन्तु यहाँ प्रारम्भ में दो
मास बीस दिन की जगह डेढ़ मास की प्रस्थापना है और २० दिन की प्रारोपणा की जगह एक मास प्रायश्चित्त स्थान की १५ दिन की प्रारोपणा वृद्धि करते हुए छह
मास तक की अारोपणा का वर्णन समझना चाहिए। ४५-५१ दो मास के प्रायश्चित्त को वहन करते हुए दोष लगाने पर एक मास स्थान को १५
दिन की प्रारोपणा वृद्धि की जाती है। तदनन्तर दो मास स्थान की २० दिन की प्रारोपणा वृद्धि को जाती है। इस तरह दोनों स्थानों से प्रारोपणा वृद्धि करते हुए छह मास तक को प्रस्थापिता आरोपणा समझ लेनी चाहिये।
इस प्रकार इस उद्देशक में प्रायश्चित्त स्थानों की आलोचना पर प्रायश्चित्त देने का एवं उसके वहनकाल में सानुग्रह, निरनुग्रह, स्थापिता एवं प्रस्थापिता आरोपणा
का स्पष्ट कथन किया गया है। उपसंहार-लघुमासिक आदि प्रायश्चित्त स्थानों के चार विभागों में जो-जो दोष स्थानों का वर्णन है तदनुसार उसके समान अन्य भी अनुक्त दोषों को समझ लेना चाहिये। दोष सेवन के भाव एवं प्रायश्चित्त ग्रहण करने वाले की योग्यता प्रादि कारणों से इन स्थानों में दिये जाने वाले शूद्ध तप
आदि के अनेकों विकल्प होते हैं जिन्हें गीतार्थ मुनि की निश्रा से या परम्परा से समझना चाहिये तथा प्रथम उद्देशक के पूर्व दी गई प्रायश्चित्त-तालिका से भी समझने का प्रयत्न करना चाहिये ।
विस्तृत विकल्पों युक्त प्रायश्चित्त विधि को समझने के लिये निशीथ पीठिका का तथा बीसवें उद्देशक के भाष्य चणि का अध्ययन करना चाहिये अथवा बृहत्कल्पसूत्र, व्यवहारसूत्र एवं निशीथसूत्र का नियुक्ति, भाष्य, चूर्णि, टीका युक्त पूर्ण अध्ययन करना चाहिये ।
नियुक्ति एवं भाष्य के अनुसार निशीथ की सूत्र संख्या २०२२ (दो हजार बावीस) होती है। प्रस्तुत संस्करण में १४०१ सूत्र हैं। यद्यपि उपलब्ध प्रतियों में सूत्र संख्या भिन्न-भिन्न अवश्य है तो भी वह अन्तर अधिक नहीं है । किन्तु नियुक्ति एवं भाष्य में कही गई सूत्र संख्या से प्रस्तुत संस्करण को सूत्र संख्या का अन्तर ६२१ सूत्रों का है । मूल सूत्रों में इतना अधिक अन्तर विचारणीय है ।
प्रस्तुत संस्करण के सूत्रों का विवेचन प्रायः भाष्य एवं चणि का प्राधार लेकर किया गया
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