Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 554
________________ ४५४] [निशीथसूत्र पडिसेवित्ता आलोएज्जा-अहावरा वीसइराइया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअट्ठ सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं, तेण परं सदसराइया चत्तारि मासा। ___ ४९. सदसराइय-चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं पटुविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आसोएज्जा-अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं, तेण परं पंचूणा पंचमासा। ५०. पंचूण-पंच-मासियं परिहारट्ठाणं पटुविए अणगारे अंतरा दो मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा-अहावरा वीसइराइया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं, तेण परं अद्धछट्टमासा । ५१. अद्धछट्टमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारद्वाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा-अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सगळं सहेउं सकारणं अहीणमहरितं तेण परं छम्मासा। ४५. दो मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त आता है। जिसे संयुक्त करने से ढाई मास की प्रस्थापना होती है। . ४६. ढाई मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से दो मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक बीस रात्रि की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त पाता है। जिसे संयुक्त करने से तीन मास और पांच रात्रि की प्रस्थापना होती है। ४७. तीन मास और पांच रात्रि प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से एक मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त आता है । जिसे संयुक्त करने से तीन मास और बीस रात्रि की प्रस्थापना होती है । ४८. तीन मास और बीस रात्रि प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन कारण से दो मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक बीस रात्रि की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त आता है । जिसे संयुक्त करने से चार मास और दस रात्रि की प्रस्थापना होती है। ४९. चार मास और दस रात्रि प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से एक मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त आता है। जिसे संयुक्त करने से पांच मास में पांच रात्रि कम की प्रस्थापना होती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567