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[ निशीथसूत्र
आलोएज्जा- अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअट्ठ सहेडं सकारणं अहीणमइरितं तेण परं अड्डपंचमासा |
४२. अड्ड- पंचमासियं परिहारट्ठाणं पट्ठविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारद्वाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा- अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअट्ठ सहेउं सकारणं अहीणमइरितं तेण परं पंचमासा |
४३. पंच - मासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा - अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअट्ठ सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं तेण परं अद्धछट्टामासा ।
४४. अद्धछट्टमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा - अहावरा पक्खिया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअट्ठ सहेडं सकारणं अहीणमइरित्तं तेण परं छम्मासा ।
३६. डेढ मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहनकाल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष सेवन करके झालोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त आता है । जिसे संयुक्त करने से दो मास की प्रस्थापना होती है ।
३७. दो मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहनकाल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष सेवन करके आालोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त आता है । जिसे संयुक्त करने सेढाई मास की प्रस्थापना होती है ।
३८. ढाई मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहनकाल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त आता है । जिसे संयुक्त करने से तीन मास की प्रस्थापना होती है ।
३९. तीन मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहनकाल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त आता है । जिसे संयुक्त करने से साढे तीन मास प्रस्थापना होती है ।
४०. साढे तीन मास प्रायश्चित्त वहन करने वाला अणगार यदि प्रायश्तित वहनकाल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से मासिक प्रायश्चित्त योग्य दोष सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक एक पक्ष की आरोपणा का प्रायश्चित्त प्राता है । जिसे संयुक्त करने से चार मास की प्रस्थापना होती है ।
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