Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 547
________________ [ ४४७ बीसवाँ उद्देशक ] आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक बीस रात्रि की आरोपणा का प्रायश्चित्त प्राता है, उसके बाद दोष सेवन करले तो दो मास और बोस रात्रि का प्रायश्चित्त आता है । पुनः विवेचन - इन सूत्रों में एक मास से लेकर छः मास तक किसी भी प्रायश्चित्त को वहन करते समय लगाये गये दो मास प्रायश्चित्त स्थान रूप दोष की सानुग्रह एवं निरनुग्रह प्रारोपण प्रायश्चित्त देने की विधि कही गई है । प्रायश्चित्त वहन काल में किसी कारण से प्रथम बार दोष लगाने पर उस पर अनुग्रह करके अल्प प्रायश्चित्त दिया जाता है । वह सानुग्रह आरोपणा प्रायश्चित्त कहा जाता है । पुनः वही दोष सेवन करने पर अनुग्रह न करके पूर्ण प्रायश्चित्त दिया जाता है वह निरनुग्रह प्रारोपणा प्रायश्चित्त कहा जाता है । इन सूत्रों का तात्पर्य यह है कि प्रायश्चित्त वहन काल में दिये गये सानुग्रह प्रायश्चित्त को आरोपित करने के पूर्व यदि फिर प्रायश्चित्त दिया जाए तो वह निरनुग्रह होता है । सानुग्रह प्रायश्चित्त की आरोपणा को वहन किये जाने वाले प्रायश्चित्त में संयुक्त न करने से पूर्व की सानुग्रह बीस दिन और बाद की निरनुग्रह दो मास आरोपणा को संयुक्त करके दो मास और बीस दिन की प्रारोपणा सूत्र में कही गई है । सानुग्रह आरोपणा प्रायश्चित्त के दिनों की संख्या निकालने की विधि प्रायश्चित्त स्थान के मास संख्या में दो जोड़कर पांच से गुणा करने पर जो संख्या आवे उतने दिन का प्रायश्चित्त होता है । यथा- दो मास में दो जोड़ने से चार हुए, उसे पांच से गुणा करने पर बीस हुए इस प्रकार दो मास के सानुग्रह दिन २० होते हैं । प्रथवा एक मास का १५ दिन, दो मास का २० दिन, तीन मास का २५ दिन, इत्यादि सानुग्रह प्रायश्चित्त के दिन समझने चाहिए । ठाणांग सूत्र अ. ५ में प्रारोपणा प्रायश्चित्त पांच प्रकार के कहे गये हैं १. प्रस्थापिता - प्रायश्चित्त वहन करते समय अन्य प्रायश्चित्त के दिनों को जोड़ दिए जाने वाली आरोपणा । २. स्थापिता- वहन किये जाने वाले प्रायश्चित्त से अन्य प्रायश्चित्त के दिनों को अलग रखी जाने वाली आरोपणा । ३. कृत्स्ना - वहन काल में लगे दोष के प्रायश्चित्त स्थान के संपूर्ण दिनों की दी जाने वाली निरनुग्रह आरोपणा | ४. अकृत्स्ना - वहन काल में लगे दोष के प्रायश्चित्त स्थान के दिनों को कम कर दी जाने वाली सानुग्रह प्रारोपणा । ५. हाडहडा - तत्काल ही वहन कराई जाने वाली आरोपणा । इन सूत्रों में एक साथ चार प्रकार की आरोपणा से संबंधित विषय का कथन किया गया है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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