Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 546
________________ ४४६] [ निशीथसूत्र आलोएज्जा -- अहावरा वीसइराइया आरोवणा आदिमज्झावसाणें सअठ्ठे सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं तेण परं सवीसइराइया दो मासा । २३. दो मासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा - अहावरा वीसइराइया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअट्ठ सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं तणं परं सवीसइराइया दो मासा । २४. मासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा - अहावरा वीसइराइया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअट्ठ सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं ते परं सवीसइराइया दो मासा । १९. छः मासिक प्रायश्चित्त वहन करनेवाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में मध्य में या अन्त में प्रयोजन हेतु या कारण से दो मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक बोस रात्रि की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त आता है, उसके बाद पुनः दोष सेवन करले तो दो मास और बीस रात्रि का प्रायश्चित्त आता है । २०. पंचमासिक प्रायश्चित्त वहन करनेवाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन हेतु या कारण से दो मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक बीस रात्रि की श्रारोपणा का प्रायश्चित्त आता है, उसके बाद पुनः दोष सेवन करले तो उसे दो मास और बीस रात्रि का प्रायश्चित्त प्राता है । २१. चातुर्मासिक प्रायश्चित्त वहन करनेवाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन हेतु या कारण से दो मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक बीस रात्रि की आरोपणा का प्रायश्चित्त प्राता है, उसके बाद पुनः दोष सेवन करले तो दो मास और बीस रात्रि का प्रायश्चित्त आता है । २२. त्रैमासिक प्रायश्चित्त वहन करनेवाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन हेतु या कारण से दो मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक बीस रात्रि की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त प्राता है, उसके बाद पुनः दोष सेवन करले तो दो मास और बीस रात्रि का प्रायश्चित्त आता है । २३. दो मासिक प्रायश्चित्त वहन करनेवाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन, हेतु या कारण से दो मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके आलोचना करे तो उसे न कम न अधिक बोस रात्रि की प्रारोपणा का प्रायश्चित्त आता है, उसके बाद पुनः दोष सेवन कर ले तो दो मास और बीस रात्रि का प्रायश्चित्त प्राता है । २४. मासिक प्रायश्चित्त वहन करनेवाला अणगार यदि प्रायश्चित्त वहन काल के प्रारम्भ में, मध्य में या अन्त में प्रयोजन हेतु या कारण से दो मास प्रायश्चित्त योग्य दोष का सेवन करके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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