Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 545
________________ बीसवां उद्देशक] [४४५ अनेक बार लगाये गये कपटरहित एवं कपटसहित आलोचना की है। प्रायश्चित्त वहन के बीच में लगाये गए दोषों की आलोचना के सम्बन्ध में चार-चार भंग कहे गए हैं उनमें से किसी भी प्रकार से आलोचना की गई हो वह सब प्रायश्चित्त उसमें अंतर्निहित कर दिया जाता है। प्रायश्चित्त वहनकाल में प्रायश्चित्त तप करने वाले की वैयावत्य करने का भी इन सूत्रों में निर्देश किया गया है । इसका तात्पर्य यह है कि उस तप काल में सेवा करना यदि आवश्यक हो तो सेवा की जाती है । प्रायश्चित्त वहनकर्ता स्वयं अपना कार्य कर सके तब तक सेवा नहीं करवाता है । यह प्रायश्चित्त वहन विधि परिहार तप की अपेक्षा से कही गई है। इससे संबंधित विशेष विवेचन चौथे उद्देशक से जानना चाहिए। शुद्ध तप रूप प्रायश्चित्त करने वाला प्रायश्चित्त में प्राप्त हुए उपवास आदि को प्रायश्चित्त दाता द्वारा निर्दिष्ट अवधि में कभी भी पूर्ण कर सकता है । अन्य दोषों की पुनः कभी आलोचना करने पर भी उसी प्रकार प्रायश्चित्त पूर्ण करता है। लघुमासिक, गुरुमासिक, लघुचौमासी, गुरुचौमासी, लघुछ:मासी और गुरु छ:मासी प्रायश्चित्त स्थानों के शुद्ध तप से प्रायश्चित्त देने की विधि प्रथम उद्देशक के पूर्व में तालिका द्वारा दी गई है, उसके अनुसार सभी प्रायश्चित्त विभाग समझ लेने चाहिए। ___इस बीसवें उद्देशक के इन सूत्रों में तथा आगे के सभी सूत्रों में जो वर्णन है वह परिहार तप प्रायश्चित्त सम्बन्धी है ऐसा समझना चाहिये। इस वर्णन से या अन्य छेदसूत्रों में आये वर्णनों से इसके विच्छेद होने का फलितार्थ नहीं निकलता है, तथापि व्याख्याकार इस परिहार तप प्रायश्चित्त को आगमविहारी के लिए कहकर वर्तमान में इसका विच्छेद बताते हैं । अतः यह प्रायश्चित्त की परम्परा वर्तमान नहीं है । दो मास प्रायश्चित्त की स्थापिता प्रारोपणा १९. छम्मासियं परिहारदाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दो मासियं परिहारट्टाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा-अहावरा वीसइराइया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअझैं सहेऊं सकारणं अहीणमइरित्तं तेणं परं सवीसइराइया दोमासा। २०. पंचमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दो मासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा-अहावरा वीसइराइया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअळं सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं तेणं परं सवीसइराइया दो मासा । २१. चाउम्मासियं परिहारट्ठाणं पढविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता आलोएज्जा-अहावरा वीसइराइया आरोवणा आदिमज्झावसाणे सअझै सहेउं सकारणं अहीणमइरित्तं तेणं परं सवीसइराइया दो मासा । २२. तेमासियं परिहारट्ठाणं पट्टविए अणगारे अंतरा दोमासियं परिहारट्ठाणं पडिसेवित्ता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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