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[निशीथसूत्र
पलिउंचिय आलोएमाणे ठवणिज्ज ठवइत्ता करणिज्जं वेयावडियं । ठविए वि पडिसेवित्ता से वि कसिणे तत्थेव आरूहेयव्वे सिया। १. पुव्विं पडिसेवियं पुट्विं आलोइयं, २. पुट्विं पडिसेवियं पच्छा आलोइयं, ३. पच्छा पडिसेवियं पुव्विं आलोइयं, ४. पच्छा पडिसेवियं पच्छा आलोइयं । १. अपलिउंचिए अपलिउंचियं, २. अपलिउंचिए पलिउंचियं, ३. पलिउंचिए अपलिउंचियं, ४. पलिउंचिए पलिउंचियं । आलोएमाणस्स सव्वमेयं सकयं साहणिय आरूहेयव्वे सिया । जे एयाए पट्ठवणाए पट्टविए निव्विसमाणे पडिसेवेइ, से वि कसिणे तत्थेव आरूहेयन्वे सिया।
१५. जो भिक्षु चातुर्मासिक या कुछ अधिक चातुर्मासिक, पंचमासिक या कुछ अधिक पंचमासिक-इन परिहारस्थानों में से किसी एक परिहारस्थान की एक बार प्रतिसेवना करके आलोचना करे तो उसे मायारहित आलोचना करने पर आसेवित प्रतिसेवना के अनुसार प्रायश्चित्त रूप परिहार तप में स्थापित करके उसकी योग्य वैयावृत्य करनी चाहिये।
यदि वह परिहार तप में स्थापित होने पर भी किसी प्रकार की प्रतिसेवना करे तो उसका सम्पूर्ण प्रायश्चित्त भी पूर्वप्रदत्त प्रायश्चित्त में सम्मिलित कर देना चाहिये ।
१. पूर्व में प्रतिसेवित दोष की पहले आलोचना की हो, २. पूर्व में प्रतिसेवित दोष की पीछे पालोचना की हो, ३. पीछे से प्रतिसेवित दोष की पहले आलोचना की हो, ४. पीछे से प्रतिसेवित दोष की पीछे से आलोचना की हो । १. मायारहित आलोचना करने का संकल्प करके मायारहित आलोचना की हो । २. मायारहित आलोचना करने का संकल्प करके मायासहित आलोचना की हो। ३. मायासहित आलोचना करने का संकल्प करके मायारहित आलोचना की हो। ४. मायासहित पालोचना करने का संकल्प करके मायासहित आलोचना की हो।
इनमें से किसी प्रकार के भंग से आलोचना करने पर उसके सर्व स्वकृत अपराध के प्रायश्चित्त को संयुक्त करके पूर्वप्रदत्त प्रायश्चित्त में सम्मिलित कर देना चाहिये।
जो इस प्रायश्चित्त रूप परिहार तप में स्थापित होकर वहन करते हुए भी पुनः किसी प्रकार की प्रतिसेवना करे तो उसका सम्पूर्ण प्रायश्चित्त भी पूर्वप्रदत्त प्रायश्चित्त में आरोपित कर देना चाहिए।
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