________________
सोलहवां उद्देशक]
[३६१ अतः कम्बल को मुखवस्त्रिका या रजोहरण के समान जीवरक्षा का आवश्यक उपकरण मानना आगमसम्मत नहीं है।
___ आसन-भिक्षु चद्दर, चोलपट्टक, कम्बल के सिवाय सूती या ऊनी आसन भी आवश्यकता एवं इच्छानुसार रख सकता है । वस्त्र ऊणोदरी तप करने वाला भिक्षु ऊनी वस्त्र का त्याग करके सूती आसन रख सकता है तथा वस्त्र का अधिक त्याग करने वाला भिक्षु आसन रखने का भी त्याग कर सकता है । वह जो भी वस्त्र रखता है, उसी को शय्या आसन के उपयोग में ले लेता है । जो अचेल बन जाता है वह बिना आसन के केवल शय्या-संस्तारक से ही निर्वाह करता है ।
व्याख्या ग्रन्थों में दो आसन रखने का विधान भी है-एक सूती, दूसरा ऊनी। वहाँ सूती को उत्तर-पट्ट और ऊनी को संस्तारक-पट्ट कहा है।
पात्र सम्बन्धी वस्त्र-१. भिक्षा लाने के लिए झोली, २. आहार युक्त पात्रों को रखने का वस्त्र, ३. खाली पात्रों को बाँधने के समय उनके बीच में दिए जाने वाले वस्त्र, ४. पानी छानने या उसे ढंकने का वस्त्र, ५. पात्र-प्रमार्जन करने का कोमल वस्त्र ।
इन्हें प्रश्न. श्रु. २, अ. ५ में क्रमशः १. पात्रबन्धन, २. पात्रस्थापनक, ३. पटल, ४. रजस्त्राण, ५. पात्रकेसरिका कहा है। ये वस्त्र आवश्यकतानुसार लम्बे-चौड़े रखे जा सकते हैं । क्योंकि आगमों में इनके माप का कोई उल्लेख नहीं है ।
पादप्रोंच्छन-यह भी एक वस्त्रमय उपकरण है। इसका कथन आगमों में अनेक स्थलों पर है । निशीथसूत्र में भी अनेक जगह इसका कथन है । इसका मुख्य उपयोग पाँव पोंछना है ।
आचारांगसूत्र में मलत्याग के समय भी इसका उपयोग करने का कहा है । बृहत्कल्प उ. ५ तथा निशीथ उ. २ के अनुसार कभी-कभी काष्ठदण्ड से बाँधकर शय्या के प्रमार्जन में भी इसका उपयोग किया जाता है। निशीथ उ. ५ के अनुसार यदि कभी आवश्यक हो तो गृहस्थ का पादपोंच्छन एक दो दिन के लिए लाया जा सकता है। इस तरह आगमों में पादप्रोंच्छन के अनेक प्रकार एवं अनेक उपयोग बताए हैं। इन भिन्न-भिन्न प्रयोगों के कारण या अन्य किसी दष्टिकोण से व्याख्याग्रन्थों में इसे रजोहण का पर्यायवाची भी मान लिया गया है। कहीं इसको दो पदों में विभाजित करके 'पात्र' तथा 'प्रोंच्छन' (रजोहरण) ऐसा अर्थ भी किया गया है। इस अर्थभ्रम के कारण मूल पाठ में भी अनेक जगह रजोहरण के स्थान पर पादप्रोंच्छन लिखा गया हो, ऐसा प्रतीत होता है । यह पादप्रोंच्छन रजोहरण से भिन्न उपकरण है, ऐसा प्रश्नव्याकरणसूत्र से स्पष्ट है। क्योंकि वहाँ दोनों उपकरण अलग-अलग कहे हैं और टीकाकार ने भी अलग-अलग गिनकर उपकरणों की संख्या १२ कही है।
दश. अ. ४ में भी एक साथ दोनों उपकरणों के नाम गिनाए हैं।
यह जीर्ण या उपयोग में आए हुए वस्त्रखण्ड का बनाया जाता है, जो सूती या ऊनी किसी भी प्रकार का हो सकता है । इसका भी कोई माप निर्दिष्ट नहीं है । व्याख्याग्रन्थों में यह एक हाथ का समचौरस ऊनी वस्त्र खण्ड कहा गया है। किन्तु ऊनी वस्त्र का त्याग कर ऊणोदरी करने वाले सभी कामों में सूती वस्त्र का ही उपयोग करते हैं। अतः कोई भी उपकरण ऊनी ही हो, ऐसा आग्रह नहीं किया जा सकता है । पादप्रोंच्छन विषयक अन्य जानकारी के लिए उ. २ सूत्र १-८ का विवेचन देखें।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org