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[निशीथसूत्र
अलग-अलग सूत्र न होने से संक्षेप में वाचनासूत्र से मूल एवं अर्थ दोनों ही प्रकार की वाचना विषयक यह प्रायश्चित्त है ऐसा समझ लेना चाहिए।
इन दोनों सूत्रों से एवं उनके विवेचन से वाचना का क्रम इस प्रकार से समझा जा सकता है१. आवश्यक सूत्र २. दशवैकालिक सूत्र ३. उत्तराध्ययन सूत्र ४. आचारांगसूत्र ५. निशीथसूत्र ६. सूयगडांगसूत्र ७. तीन छेदसूत्र (दशाश्रुतस्कन्धसूत्र, बृहत्कल्पसूत्र, व्यवहार सूत्र) ८. ठाणांग सूत्र, समवायांग सूत्र ९. भगवती सूत्र
शेष कालिक या उत्कालिकसूत्र इस अध्ययन क्रम के मध्य में या बाद में कहीं भी गीतार्थ मुनि की आज्ञा से अध्ययन करना या कराना चाहिए । इस क्रम से ही मूल और अर्थरूप आगम को कंठस्थ करने की आगम प्रणाली समझनी चाहिए। अयोग्य को वाचना देने एवं योग्य को न देने का प्रायश्चित्त
१८. जे भिक्खू अपत्तं वाएइ, वाएंतं वा साइज्जइ । १९. जे भिक्खू पत्तं ण वाएइ, ण वाएंतं वा साइज्जइ। २०. जे भिक्खू अव्वत्तं वाएइ, वाएंतं वा साइज्जइ। २१. जे भिक्खू वत्तं ण वाएइ, ण वाएंतं वा साइज्जइ । १८. जो भिक्षु अपात्र (अयोग्य) को वाचना देता है या देने वाले का अनुमोदन करता है।
१९. जो भिक्षु पात्र (योग्य) को वाचना नहीं देता है या नहीं देने वाले का अनुमोदन करता है।
२०. जो भिक्षु अव्यक्त को वाचना देता है या देने वाले का अनुमोदन करता है।
२१. जो भिक्षु व्यक्त को वाचना नहीं देता है या नहीं देने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।)
विवेचन-पूर्व सूत्रों में, सूत्रों की तथा अध्ययन, उद्देशक आदि को क्रमपूर्वक वाचना न देने का प्रायश्चित्त कहा गया है। क्योंकि आगम निर्दिष्ट प्राथमिक सूत्र, अध्ययन या उद्देशक आदि की वाचना ले लेने से ही आगे के सूत्र अध्ययन या उद्देशक आदि के वाचना की योग्यता प्राप्त होती है एवं ।
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