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सत्रहवाँ अध्ययन]
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१३. जो भिक्षु कौतूहल के संकल्प से मूषक श्रादि के चर्म से निष्पन्न वस्त्र यावत् अनेक प्रकार के आभरणयुक्त वस्त्र धारण करता है या धारण करने वाले का अनुमोदन करता है ।
१४. जो भिक्षु कौतूहल के संकल्प से मूषक आदि के चर्म से निष्पन्न वस्त्र यावत् अनेक प्रकार के आभरणयुक्त वस्त्र पहनता है या पहनने वाले का अनुमोदन करता है । ( उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है 1 )
विवेचन - भिक्षु को कुतुहलवृत्ति से रहित एवं गंभीर स्वभाव वाला होना चाहिये । उसे कुतूहल वृत्ति वालों की संगति भी नहीं करना चाहिए। संयम, तप, स्वाध्याय, ध्यान आदि में ही सदा प्रवृत्त रहना चाहिये ।
सूत्र १ र २ का विवेचन उद्देशक १२ में तथा ३ से १४ तक का विवेचन उद्देशक ७ किया जा चुका है ।
माला, आभूषण आदि पहनने से वेषविपर्यास होता है । लोकनिंदा भी होती है । इन पदार्थों की प्राप्ति में तथा रखने में भी दोषों की संभावना रहती है । अतः ये प्रवृत्तियां भिक्षु के लिये अनावरणीय हैं ।
श्रमण या श्रमणी द्वारा एक दूसरे का शरीर - परिकर्म गृहस्थ से करवाने का प्रायश्चित्त १५- ६८. जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स पाए अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा आमज्जावेज्ज वा मज्जावेज्ज वा, आमज्जावतं वा पमज्जावेंतं वा साइज्जइ ।
एवं तइय उद्देसगगमेण णेयव्वं जाव जा णिग्गंथी णिग्गंथस्स गामाणुगामं दुइज्जमाणस्स अण्णउत्थिएन वा गारत्थिएण वा सीसवारियं कारावेइ, कारावेंतं वा साइज्जइ ।
६९-१२२. जे णिग्गंथे णिग्गंथीए पाए अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा आमज्जावेज्ज वा पमज्जा वेज्ज वा, आमज्जावेंतं वा पमज्जावेंतं वा साइज्जइ ।
एवं तय उद्देगगमेण णेयव्वं जाव जे णिग्गंथे णिग्गंथीए गामाणुगामं दुइज्जमाणीए अण्णउत्थिएण वा गारत्थिएण वा सोसदुवारियं कारावेइ, कारावेंतं वा साइज्जइ ।
१५- ६८. जो निर्ग्रन्थी निर्ग्रन्थ के पैरों का अन्यतीर्थिक या गृहस्थ से एक बार या बार-बार आमजन करवाती है या करवाने वाली का अनुमोदन करती है ।
इस प्रकार तीसरे उद्देशक के ( सूत्र १६ से ६९ ) के समान पूरा श्रालापक जानना चाहिए यावत् जो निर्ग्रन्थी ग्रामानुग्राम जाते हुए निर्ग्रन्थ के मस्तक को अन्यतीर्थिक या गृहस्थ से ढकवाती है। या ढकवाने वाली का अनुमोदन करती है ।
६९-१२२. जो निर्ग्रन्थ निर्ग्रन्थी के पैरों का अन्यतीर्थिक या गृहस्थ से एक बार या बारबार ग्रामर्जन करवाता है या करवाने वाले का अनुमोदन करता है ।
इस प्रकार तीसरे उद्देशक के समान पूरा श्रालापक जानना चाहिए यावत् जो निर्ग्रन्थ
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