Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

Previous | Next

Page 511
________________ उन्नीसवां उद्देशक] [४११ का दिन निश्चित करने का कोई आधार नहीं मिलता है तथापि क्रम के अनुसार यक्ष महोत्सव चैत्र को पूनम एवं भूत महोत्सव आषाढ की पूनम का माना जा सकता है । आचा. श्रु. २, अ. १, उ. २ में अनेक महोत्सवों का कथन है। प्रस्तुत ग्यारहवें सूत्र में कहे गये चारों महोत्सवों के नाम भी वहां है किन्तु क्रम भिन्न है, यथा १. इंद महेसु वा, २. खंद महेसु वा, ३. रूद्द महेसु वा, ४. मुगुद महेसु वा, ५. भूय महेसु वा, ६. जक्ख महेसु वा, ७. नाग महेसु वा। यहाँ भी महोत्सव कथन में इन्द्र और स्कन्ध महोत्सव को प्रथम एवं द्वितीय स्थान में कहा गया है। अतः निष्कर्ष यह है कि ग्यारहवें सूत्र के इन्द्र, स्कन्ध, यक्ष और भूत महोत्सव के अनुसार बारहवें सूत्र के शब्दों का क्रम इस प्रकार होना चाहिए। आसोजी प्रतिपदा, कार्तिकी प्रतिपदा, चैत्री प्रतिपदा और आषाढी प्रतिपदा । इसलिए प्रस्तुत सूत्र १२ में यही क्रम स्वीकार किया है। ये चारों महोत्सव क्रमशः इन्द्र से, कार्तिकेय देव से, यक्ष एवं भूत व्यन्तर जाति के देवों से सम्बन्धित हैं अर्थात इन्हें प्रसन्न रखने के लिए लोग इनकी पूजा-प्रतिष्ठा करते हए दिन भर पीना, गाना-बजाना, नाचना-घूमना, मद्यपान करना आदि मौज शौक करते हुए प्रमोद पूर्वक रहते हैं । ये महोत्सव पूनम के दिन होते हैं । देवों का आवागमन भी इन दिनों में बना रहता है तथा अनेक लोगों का भी इधर-उधर आवागमन रहता है। प्रतिपदा के दिन भी इन महोत्सवों का कुछ कार्यक्रम शेष रह जाता है अत: उसे भी महामहोत्सव की प्रतिपदा का दिन कहा गया है। स्वाध्याय-निषेध का कारण यह है कि उन दिनों में भ्रमण करने वाले देव छोटे-बड़े अनेक प्रकार के होते हैं तथा भिन्न-भिन्न स्वभाव वाले एवं कौतूहली भी होते हैं। वे देव स्वाध्याय में स्खलना हो जाने पर उपद्रव कर सकते हैं। स्खलना न होने पर भी अधिक ऋद्धिसम्पन्न देव उपद्रव कर सकते हैं। मौज-शौक मनोरंजन प्रानन्द के दिन शास्त्रवाचन लोक में अव्यावहारिक समझा जाता है । लोग भी अनेक प्रकार के नशे में भ्रमण करते हुए कुतूहल या द्वेषवश उपद्रव कर सकते हैं । इत्यादि कारणों से इन आठ दिनों में स्वाध्याय करने की आगम अाज्ञा नहीं है । इन चार महोत्सवों के निर्देश से प्राचारांगसूत्र कथित अन्य अनेक महोत्सव, जो सर्वत्र प्रचलित हों उनके प्रमुख दिनों में भी स्वाध्याय नहीं करना चाहिए या उच्चस्वर से नहीं करना चाहिए। सूत्र १२ में जो 'आषाढी प्रतिपदा' आदि शब्द है उनका अर्थ आषाढी पूनम के बाद आने वाली प्रतिपदा अर्थात् श्रावण वदी एकम ऐसा समझना ही उपयुक्त है। किन्तु 'प्राषाढी पूनम के बाद पुनः आषाढ वदी एकम हो' ऐसा नहीं समझना चाहिए। इसी प्रकार शेष तीनों प्रतिपदा भी उस महोत्सव की पूनम के बाद आने वाली प्रतिपदा को ही मानना उचित है। आगमों में अनेक स्थलों में कथित तीर्थंकर आदि के वर्णनों में स्पष्ट रूप से प्रत्येक मास में प्रथम कृष्णपक्ष और द्वितीय शुक्लपक्ष कहा जाता है । यथा-प्राचारांग श्रु. २, अ. १५ में "गिम्हाणं पढमे मासे दोच्चे पक्खे चेत्त सुद्धे, तस्सणं चेत्त सुद्धस्स तेरसी पक्खेणं"...... । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 509 510 511 512 513 514 515 516 517 518 519 520 521 522 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567