Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 509
________________ उन्नीसवां उद्देशक ] [ ४०९ इस प्रकार आगम (सूत्र) की परिभाषा में आने वाला श्रुत बहुत ही अल्प है । वर्तमान में ३२ श्रागम अथवा ४५ आगम कहने को परम्परा प्रचलित है, जिसमें सूत्र को परिभाषा के अतिरिक्त अनेक आगम सम्मिलित किए जाते हैं और इनमें किसी-किसी व्याख्या ग्रन्थ को भी सूत्र गिन लिया गया है यथा saक्ति आदि । दस पूर्व से कम यावत् एक पूर्व तक के ज्ञानी द्वारा रचित श्रुत भी सम्यग् हो सकता है और उसे आगम कहा जा सकता है । यह नन्दीसूत्र के उत्कालिकश्रुत एवं कालिकश्रुत की सूची से स्पष्ट होता है । नन्दीसूत्र की रचना के समय उपलब्ध ७२ सूत्रों को नन्दीसूत्र के रचनाकार ने श्रागम रूप में स्वीकार किया है। उनमें कई एक पूर्वधारी बहुश्रुतों के द्वारा रचित या संकलित श्रुत भी हैं । अतः इन ७२ सूत्रों में से जितने सूत्र उपलब्ध हैं और जिनमें कोई अत्यधिक परिवर्तन या क्षति नहीं हुई है, उन्हें आगम न मानना केवल दुराग्रह है, एवं उससे नन्दीसूत्रकर्ता की प्रासातना भी स्पष्ट है । इन ७२ सूत्रों में से उपलब्ध जिन सूत्रों में अहिंसादि मूल सिद्धान्तों के विपरीत प्ररूपण प्रक्षिप्त कर दिया है उन्हें शुद्ध प्रागम मानना भी उचित नहीं है । इन ७२ सूत्रों के सिवाय अन्य सूत्र, ग्रन्थ, टीका, भाष्य, नियुक्ति, चूर्णी, निबन्धग्रन्थ या सामाचारी - ग्रन्थ आदि को श्रागम या श्रागम तुल्य मानने का आग्रह करना तो सर्वथा अनुचित है । नन्दी सूत्र की रचना के समय ७२ सूत्रों के अतिरिक्त अन्य कोई भी पूर्वधरों द्वारा रचित सूत्र, ग्रन्थ या व्याख्या-ग्रन्थ उपलब्ध नहीं थे यह निश्चित है । यदि कुछ उपलब्ध होते तो उन्हें श्रुतसूची में अवश्य समाविष्ट किया जाता, क्योंकि इस सूची में अज्ञात रचनाकारों के तथा एक पूर्वधारी बहुतों के रचित श्रुत को भी स्थान दिया गया है । तो अनेक पूर्वधारी या १४ पूर्वधारी प्राचार्यों द्वारा रचित और उपलब्ध श्रुत का किसी भी रूप में उल्लेख नहीं करने का कोई कारण ही नहीं हो सकता । अतः शेष सभी सूत्र, व्याख्याएं, ग्रन्थ आदि नन्दीसूत्र की रचना के बाद में रचित हैं यह स्पष्ट है । फिर भी इतिहास सम्बन्धी वर्णनों के दूषित हो जाने से व्याख्या ग्रन्थ भी चौदह पूर्वी आदि द्वारा रचित होने की भ्रांत धारणाएं प्रचलित हैं । प्रस्तुत प्रायश्चित्त सूत्र में नन्दीसूत्र में निर्दिष्ट आगमों में से उपलब्ध कालिकसूत्रों के स्वाध्याय के विषय में तीन पृच्छाओं अर्थात् ९ श्लोक का प्रमाण समझना चाहिए । दृष्टिवाद नामक बारहवें अंगसूत्र का अभी विच्छेद है । अतः ७ पृच्छा अर्थात् २१ श्लोक का प्रमाण वर्तमान में उपलब्ध किसी भी सूत्र के लिये नहीं समझना चाहिए । जो सूत्र दृष्टिवाद में से निर्यूढ (उद्धृत संकलित) किये गये हैं और वे कालिकसूत्र हैं तो उनके लिए भी स्वतन्त्र लघुसूत्र बन जाने से तीन पृच्छा [९ श्लोक ] का प्रमाण ही समझना चाहिए । इन सूत्रों के मूलपाठ का उत्काल में उच्चारण करना आवश्यक हो तो एक साथ ९ श्लोक प्रमाण उच्चारण करने पर प्रायश्चित्त नहीं आता है। इससे अधिक पाठ का उच्चारण करने पर सूत्रोक्त प्रायश्चित्त आता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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