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[निशीषसूत्र
४१ सत्रों के स्थान पर चणिकार ने २५ सत्रों का उच्चारण करने का कहा है तथा १४वें उद्देशक के समान अर्थ समझने की सूचना भी की है । चूर्णिकार ने सूत्रसंख्या २५ कहने में पुराने एवं दुर्गन्धयुक्त वस्त्र के पाठ सूत्रों की संख्या को दो सूत्रों में गिना है तथा पात्र सुखाने के ग्यारह सूत्रों को भी एक सूत्र गिना है, जिससे १६ सूत्र कम हो जाने से ४१ के स्थान पर २५ ही शेष रहते हैं । इस प्रकार सूत्रसंख्या गिनने में केवल अपेक्षाभेद है, किन्तु सूत्रसंख्या में कोई मौलिक अन्तर नहीं समझना चाहिए।
पात्र में जो कोरणी करने का सूत्र है, उससे यहाँ वस्त्र में कसीदा करना आदि अर्थ समझ लेना चाहिये।
६-९
अठारहवें उद्देशक का सारांश
अत्यावश्यक प्रयोजन के बिना नौकाविहार करना या अन्य वाहन विहार करना । २-५ क्रीतादि दोषयुक्त नौका में चढ़ना ।
नौका में चढ़ने के लिये नावा को जल से स्थल में, स्थल से जल में मंगाना, कीचड़ में से निकलवाना या नावा में भरा जल निकलवाना। नौका तक जाने के लिये दूसरी नौका आदि करना । अनुस्रोत या प्रतिस्रोत में जाने वाली नौका में जाना । प्राधा योजन या एक योजन से अधिक लम्बा मार्ग तय करने वाली नौका में
जाना। १३-१४ नौका चलाना या उसमें सहायता करना ।
नौका में आने वाले जल को बाहर उलीचना ।
नौका में छिद्र हो जाने पर उसे बन्द करना । १७-३२ नौकाविहार के प्रसंग में स्थल, जल, कीचड़ या नावा में आहार ग्रहण करना। ३३-७३
वस्त्रसम्बन्धी दोषों का सेवन करना। इत्यादि प्रवृत्तियों का लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।
इस उद्देशक के ४२ सूत्रों के विषय का कथन आचारांगसूत्र में है२-१६ नौकासम्बन्धी विधि निषेधों का क्रमबद्ध वर्णन है।
-प्राचा. श्रु. २, अ. ३, उ. १-२ ३३-३६ तथा इन २७ सूत्रों के विषय चौदहवें उद्देशक के सूत्र १-४ तथा ८-३० तक के समान ४०-६२ वस्त्र के लिये समझना। -प्राचा. श्रु. २, अ. ६, उ. १-२
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