________________
४०६]
[निशीयसूत्र ८. जो भिक्षु प्रातःकाल संध्या में, सायंकाल संध्या में, मध्याह्न में और अर्धरात्रि में इन चार सन्ध्याओं में स्वाध्याय करता है या स्वाध्याय करने वाले का अनुमोदन करता है । (उसे लघु चौमासी प्रायश्चित्त आता है।)
विवेचन-सन्ध्याएँ चार कही गई हैं, यथा
१. पूर्व सन्ध्या-सूर्योदय के समय जो पूर्व दिशा में लालिमा रहती है उसे 'पूर्व सन्ध्या' कहा जाता है । यह रात्रि और दिवस का संधिकाल है । इसमें सूर्योदय के पूर्व अधिक समय लालिमा रहती है और सूर्योदय के बाद अल्प समय रहती है । यह समय लगभग एक मुहूर्त का होता है ।
२. पश्चिम सन्ध्या-पूर्व सन्ध्या के समान ही पश्चिम सन्ध्या सूर्यास्त के समय समझनी चाहिए । इसमें सूर्यास्त के पूर्व लाल दिशा कम समय रहती है और सूर्यास्त के बाद लाल दिशा अधिक समय तक रहती है । इस सम्पूर्ण लाल दिशा के काल को 'पश्चिम सन्ध्या' कहा गया है ।
३. अपराह्न-मध्याह्न-दिवस का मध्यकाल । जितने मुहूर्त का दिन हो उसके बीच का एक मुहूर्त समय मध्याह्न कहा जाता है । उसे ही सूत्र में "अपराह्न" कहा है। यह समय प्रायः बारह बजे से एक बजे के बीच में आता है । कभी-कभी कुछ पहले या पीछे भी हो जाता है।
४. अड्डरत्ते-रात्रि के मध्यकाल को "अर्द्ध रात्रि" कहा गया है । इसे "अपराह्न" के समान समझना चाहिए।
दिवस और रात्रि का मध्यकाल लौकिक शास्त्र-वाचन के लिए भी अयोग्य काल माना जाता है । शेष दोनों संध्याकाल को आगम में प्रतिक्रमण और शय्या उपधि के प्रतिलेखन करने का समय कहा है, इस समय में स्वाध्याय करने पर इन आवश्यक क्रियाओं के समय का अतिक्रमण होता है ।
ये चारों काल व्यन्तर देवों के भ्रमण करने के हैं। अतः किसी प्रकार का प्रमाद होने पर उनके द्वारा उपद्रव होना सम्भव रहता है। लौकिक में भी प्रात:-सायं भजन स्मरण । एवं अर्द्ध रात्रि प्रेतात्माओं के भ्रमण के माने जाते हैं ।
इन चार कालों में भिक्षु को स्वाध्याय न करने से कुछ विश्रान्ति भी मिल जाती है। इन चारों सन्ध्याओं का काल स्थूल रूप में इस प्रकार है
१. पूर्व सन्ध्या-सूर्योदय से २४ मिनिट पहले और २४ मिनिट बाद अथवा ३६ मिनिट पूर्व और १२ मिनिट बाद।
२. पश्चात् सन्ध्या-सूर्यास्त से २४ मिनिट पहले और २४ मिनिट बाद अथवा १२ मिनिट पूर्व और ३६ मिनिट बाद ।।
सूक्ष्म दृष्टि से इन सन्ध्याओं का काल लाल दिशा रहे जब तक होता है जो उपरोक्त कालावधि से हीनाधिक भी हो जाता है।
३-४. मध्याह्न एवं अर्द्ध रात्रि-परम्परा से स्थूल रूप में दिन और रात्रि के १२ बजे से एक बजे तक का समय माना जाता है। सूक्ष्म दृष्टि से दिन या रात्रि के मध्य भाग का एक मुहूर्त समय होता है।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org