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सोलहवां उद्देशक ]
अक्खा
संथारो १० य, एगमणेगंगिओ य उक्कोसो । पोत्थपणगं २० फलगं २१ बितिय पदे होइ उक्कोसो ॥१४१६॥
- नि. भाष्य भा. २ पृष्ठ १९२-९३
- बृहत्कल्प भाष्य गा. ४०९६ से ४०९९
अर्थ - १. अनेक प्रकार के पीढे, २. निषद्या, ३. दंडप्रमार्जनिका, डांडिया या डंडासन, ४. डगल - पत्थरादि, ५. कैंची ( कतरनी), ६. सूई, ७. नखछेदनक, ८. कर्ण-शोधनक, ९. दन्त-शोधनक, १०. छत्र पंचक, ११. चिलमिलिका पंचक, १२. संस्तारक ( अनेक प्रकार के तृण), १३. पांच प्रकार के दंड लाठी आदि, १४. तीन मात्रक (उच्चार, प्रस्रवण, खेल मात्रक ), १५. अवलेखनिका (बांस की खपच्ची), १६. चर्मत्रिक (सोने, बैठने एवं प्रोढने का ), १७. संस्तारक पट और उत्तरपट्ट ( ऊनी एवं सूती शयनवस्त्र), १८. प्रक्ष-समवसरण (स्थापनाचार्य), १९. चटाई आदि, २० पुस्तक पंचक, २१. फलग- लकड़ी के पाट आदि ।
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भिक्षु इन उपकरणों को उत्सर्गविधि से नहीं रख सकता है, आपवादिक स्थिति में ये ग्रहिक उपकरण रखे जा सकते हैं ।
पुस्तक के कथन से अध्ययन की लेखन सामग्री के अन्य उपकरण एवं चश्मे आदि भी क्षेत्रकाल अनुसार आवश्यक होने पर रखे जा सकते हैं ।
यहां यह उल्लेखनीय है कि इन उपकरणों में सूई, कैंची, छत्र आदि धातु वाले उपकरण भी
कहे हैं ।
पुस्तक, मात्रक, संस्तारक, पाट तथा शयनवस्त्र को भी आपवादिक उपकरण कहा है तथा अनेक प्रचलित उपकरणों एवं पदार्थों का यहां कोई उल्लेख नहीं है । श्रागम तथा उनके भाष्य टीका के अतिरिक्त भिन्न-भिन्न समुदायों में प्रचलित कुछ उपकरण इस प्रकार हैं
१. नांद, तगड़ी, सूपड़ी, चूली, मूर्ति आदि ।
२. गुरुजनों के फोटू आदि ।
३. समय की जानकारी के लिए घड़ी । ४. स्थापनाचार्य के लिए ठमणी । ५. पुस्तक रखने के सापड़ा, सापड़ी | ६. योग की पाटली, दांडी, दंडासन ।
७. वासक्षेप का डिब्बा या बटुआ ।
८. प्लास्टिक के लोटा गिलास ढक्कन आदि उपकरण ।
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९. रात्रि में रखने के पानी में डालने के चूने का डिब्बा ।
१०. वस्त्र, पात्र आदि को स्वच्छ करने के लिए साबुन सोडा सर्फ प्रादि ।
११. वस्त्रादि सुखाने के लिए तथा चिलमिली आदि के लिए डोरियां ।
इन उपकरणों के रखने का विधान आगमों में या भाष्य आदि व्याख्या ग्रन्थों में नहीं है । फिर भी अत्यावश्यक होने पर ही संयम एवं शरीर आदि की सुरक्षा के हेतु ये प्रोपग्रहिक उपकरण रखे जा सकते हैं । इसके अतिरिक्त केवल प्रवृत्ति या परम्परा से रखे जाने वाले सभी उपकरण परिग्रह रूप होते हैं ।
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