Book Title: Agam 24 Chhed 01 Nishith Sutra Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 456
________________ ३५६] [निशीयसूत्र मर्यादा से अधिक उपधि रखने का प्रायश्चित्त ३९. जे भिक्खू गणणाइरित्तं वा, पमाणाइरित्तं वा उहि धरेइ, धरतं वा साइज्जइ । ३६. जो भिक्षु गणना से या प्रमाण से अधिक उपधि रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है । (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है।) विवेचन–भिक्षु के सम्पूर्ण उपधि सूचक सूत्र बृहत्कल्पसूत्र उ. ३ में तथा प्रश्नव्याकरणसूत्र श्रु. २, अ. ५ में है। भिक्षु को दीक्षित होते समय रजोहरण, गोच्छग, पात्र और तीन अखण्ड वस्त्र ग्रहण करके प्रवजित होना कल्पता है। ऐसा बृहत्कल्पसूत्र में कहा है । यहाँ रजोहरण, गोच्छग [पूजणी] और पात्र की संख्या का कथन नहीं किया गया है । शेष उपकरण चद्दर, चोलपट्टक, मुखवस्त्रिका, आसन, झोली, पात्र के वस्त्र, रजोहरण का वस्त्र इनके लिए कुल तीन अखण्ड वस्त्र लेने का कथन है, किन्तु इनकी अलग-अलग संख्या या माप नहीं बताया गया है। __बृहत्कल्पसूत्र के उद्देशक तीन में ही अखण्ड वस्त्र (पूर्ण थान) रखने का निषेध किया गया है। अतः यहाँ पर कहे गए तीन थान केवल सम्पूर्ण उपधि के माप के सूचक हैं, ऐसा समझना चाहिए। जिसका परम्परा से ७२ हाथ प्रमाण वस्त्र का माप माना गया है। किन्तु मूल आगमों में एवं भाष्यादि में इस माप का स्पष्ट उल्लेख नहीं है । प्रश्नव्याकरणसूत्र में कहा है “पात्रधारी सुविहित श्रमण के ये उपकरण होते हैं-पात्र, पात्रबन्धन, पात्रकेसरिका, पात्र रखने का वस्त्र तीन पटल, रजस्त्राण, गोच्छग, तीन चद्दर, रजोहरण, चोलपट्टक, मुखवस्त्रिका आदि इनको भी वह संयम और शारीरिक सुरक्षा के लिए धारण करता है।" यहाँ रजोहरण और गोच्छग का कथन करने के साथ पात्र के स्थान पर पात्र सम्बन्धी ६ उपकरण एवं तीन अखण्ड वस्त्र की जगह चद्दर, चोलपट्टक, मुखवस्त्रिका आदि कहे हैं, इनमें पटल एवं चादर की संख्या तीन-तीन कही है, किन्तु पात्र, चोलपट्टक, मुखवस्त्रिका तथा सम्पूर्ण उपकरणों की संख्या का निर्देश नहीं है तथा पाठ के अन्त में "आदि" शब्द का प्रयोग किया गया है, जिससे अन्य उपधि का भी ग्रहण हो सकता है, यथा-प्रासन आदि । इन दो स्थलों के अतिरिक्त आचारांगसूत्र में वस्त्र-पात्र सम्बन्धी स्वतन्त्र अध्ययन भी है तथा छेदसूत्रों में भी वस्त्र पात्र रजोहरण आदि के विधि-निषेध का अनेक सूत्रों में वर्णन है। प्रस्तुत प्रायश्चित्तसूत्र में गिनती से और प्रमाण [माप] से अधिक उपधि रखने का प्रायश्चित्त कहा है किन्तु उपर्युक्त प्रागमों में उपधि के माप तथा संख्या का स्पष्ट उल्लेख कहीं नहीं मिलता है। केवल चद्दर और पात्र के पटल एवं अखण्ड वस्त्र की संख्या का उल्लेख है । भाष्य नियुक्ति में उपधि का विस्तृत वर्णन होते हुए भी अनेक आवश्यक उपकरणों के माप एवं संख्या का उल्लेख नहीं है तथा कई उल्लेख अस्पष्ट हैं, यथा-एक पात्र रखना या तरुण साधु को दो हाथ का चोलपट्टक रखना । एक मात्रक रखना किन्तु उसको उपयोग में नहीं लेना, इत्यादि। इन्हीं कारणों से उपधि । परिमाण की परम्पराएँ भिन्न-भिन्न हो गई हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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