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[ निशीयसूत्र
४. राजसभा - राजा की सभा में या कहीं भी राजा के पास जाने के समय पहने जाने वाले वस्त्रों को चौथे भेद में कहा गया है ।
इनमें से किसी प्रकार के वस्त्र को ग्रहण करना हो तो भिक्षु उस वस्त्र के विषय में पूछताछ करके यह जानकारी कर ले कि यह वस्त्र किसी भी उद्गम आदि दोष से युक्त तो नहीं है, पूर्ण रूप से निर्दोष है ? ऐसी जानकारी करके ही उसे ग्रहण करे । बिना जानकारी किये लेने पर स्थापना, अभिहृत, क्रीत, अनिसृष्ट आदि अनेक दोषों के लगने की संभावना रहती है। प्रौद्देशिक या पश्चात् - कर्म दोष भी लग सकता है । अतः ये चारों प्रकार के वस्त्र याचना प्राप्त हों या निमंत्रणा से प्राप्त हों तो इनके संबंध में आवश्यक पूछताछ - गवेषणा न करने का इस सूत्र प्रायश्चित्त कहा गया है । इसलिए भिक्षु को वस्त्र के संबंध में सावधानी पूर्वक गवेषणा करनी चाहिए । वस्त्र के कथन से अन्य भी पात्र आदि उपकरणों के संबंध में गवेषणा करने की आवश्यकता और प्रायश्चित्त समझ लेना चाहिए ।
विभूषार्थ शरीर के परिकर्म करने का प्रायश्चित्त -
९९-१५२. जे भिक्खू विभूसावडियाए अप्पणोपाए आमज्जेज्ज वा, पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा साइज्जइ एवं तइय उद्देसग गमेण णेयव्वं जाव जे भिक्खू विभूसावडियाए गामाणुगामं इज्जमाणे अप्पणी सीसवारियं करेइ करेंतं वा साइज्जइ ।
९९-१५२. जो भिक्षु विभूषा के लिये अपने पांवों का एक बार या बार- बार " ग्रामर्जन " करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है, इस प्रकार तीसरे उद्देशक के (सूत्र १६ से ६९ तक के समान पूरा आलापक जानना यावत् जो भिक्षु विभूषा के लिये ग्रामानुग्राम विहार करते समय अपने मस्तक को ढंकता है या ढंकने वाले का अनुमोदन करता है । ( उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है ।)
विवेचन - उद्देशक तीन के समान इन ५४ सूत्रों का विवेचन समझ लेना चाहिए । यहाँ विभूषा के विचारों से ये कार्य करने पर लघुचौमासी प्रायश्चित्त कहा गया है, इतना ही अंतर है । विभूषा हेतु उपकरण धारण एवं प्रक्षालन का प्रायश्चित्त
१५३. जे भिक्खू विभूसावडियाए वत्थं वा, पडिग्गहं वा, कंबलं वा, पायपुछणं वा अण्णयरं वा वगरणजायं धरेइ, धरेंतं वा साइज्जइ ।
१५४. जे भिक्खू विभूसावडियाए वत्थं वा, पडिग्गहं वा, कंबलं वा, पायपु छणं वा अण्णयरं वा उवगरणजायं धोवेइ, धोवंतं वा साइज्जइ ।
तं सेवमाणे आवज्जइ चाउम्मसियं परिहारट्ठाणं उग्घाइथं ।
१५३. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से वस्त्र, पात्र, कंबल, पादप्रोंछन या अन्य कोई भी उपकरण रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है ।
१५४. जो भिक्षु विभूषा के संकल्प से वस्त्र, पात्र, कंबल, पादप्रोंछन या अन्य कोई भी उपकरण धोता है या धोने वाले का अनुमोदन करता है ।
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