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[निशीथसूत्र . ९६. जे भिक्खू णितियस्स वत्थं वा, पडिग्गहं वा, कंबलं वा पायपुछणं वा देइ, देंतं वा साइज्जइ।
९७. जे भिक्खू णितियस्स वत्थं वा, पडिग्गहं वा, कंबलं वा, पायपुछणं वा पडिच्छइ, पडिच्छंतं वा साइज्जइ।
८८. जो भिक्षु पार्श्वस्थ को वस्त्र, पात्र, कंबल या पादपोंछन देता है या देने वाले का अनुमोदन करता है।
___८९. जो भिक्षु पार्श्वस्थ का वस्त्र, पात्र, कंबल या पादपोंछन लेता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है।
९०. जो भिक्षु अवसन्न को वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादनोंछन देता है या देने वाले का अनुमोदन करता है।
९१. जो भिक्षु अवसन्न का वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादपोंछन लेता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है।
९२. जो भिक्षु कुशील को वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादपोंछन देता है या देने वाले का अनुमोदन करता है।
९३. जो भिक्षु कुशील का वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादपोंछन लेता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है।
९४. जो भिक्षु संसक्त को वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादपोंछन देता है या देने वाले का अनुमोदन करता है।
९५. जो भिक्षु संसक्त का वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादपोंछन लेता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है।
९६. जो भिक्षु नित्यक को वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादपोंछन देता है या देने वाले का अनुमोदन करता है।
९७. जो भिक्षु नित्यक का वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादपोंछन लेता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है (उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।)
विवेचन-पार्श्वस्थ आदि के साथ आहार के समान वस्त्र, पात्र आदि उपकरणों का लेन-देन भी सुविहित साधु को नहीं कल्पता है। शेष विवेचन पूर्ववत् जानना चाहिये ।
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