________________
पन्द्रहवां उद्देशक
६७-७५ ९९ - १५४
१-४ ७६-९७
अकल्पनीय स्थानों में मल-मूत्र परठने का निषेध, विभूषा के संकल्पों का तथा प्रवृत्तियों का निषेध,
इस उद्देशक के २७ सूत्रों के विषयों का कथन अन्य आगमों में नहीं है, यथा-
सामान्य साधु साध्वियों की भी आशातना नहीं करना ।
गृहस्थ को आहार-वस्त्रादि न देना तथा आहार एवं वस्त्रादि का लेन-देन पार्श्वस्थादि से नहीं करना ।
याचना - वस्त्र या निमंत्रण वस्त्र के उद्गमादि दोषों की गवेषणा न करना ।
Jain Education International
[ ३४१
- प्राचा. श्रु. २ अ. १० — उत्तरा. अ. १६ तथा
- दशवै. अ. ३ अ. ६.८
९८
इन विषयों के कुछ संकेत निम्नांकित आगमों में मिलते हैं, यथा -कुशील के साथ संसर्ग करने का निषेध - सूय. श्रु. १ प्र. ९गा. २८ में है । दूसरे भिक्षुओं को प्रियवचन कहने का निषेध - दशवै. अ. १० गा. १८ में है । सामान्य रूप से उद्गम प्रादि दोषों की गवेषणा का विधान उत्तरा. प्र. २४ तथा दशवे. अ. ५ में है ।
॥ पन्द्रहवां उद्देशक समाप्त ॥
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org