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ग्यारहवां उद्देशक]
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इस प्रकार बृहत्कल्प आदि सूत्रों का कथन उत्सर्ग विधि है, ठाणांगसूत्र का कथन अपवाद विधि है एवं प्रस्तुत सूत्र कथित प्रायश्चित्त परिस्थिति के बिना सह निवास करने का है, ऐसा समझना चाहिए। रात में लवणादि खाने का प्रायश्चित्त
__ ९०. जे भिक्खू परियासियं पिप्पल वा, पिप्पलि-चुण्णं वा, मिरीयं वा, मिरीय-चुण्णं वा, सिंगबेरं वा, सिंगबेर-चुण्णं वा, बिलं वा लोणं, उभियं वा लोणं आहारेइ, आहारेतं वा साइज्जइ ।
९० जो भिक्षु रात्रि में रखे हुए पीपर या पीपर का चूर्ण, मिर्च या मिर्च का चूर्ण, सोंठ या सोंठ का चूर्ण, बिड़लवण या उद्भिन्नलवण को खाता है या खाने वाले का अनुमोदन करता है, (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।)
विवेचन-लवण आदि के संग्रह का निषेध दशवै. अ. ६, गा. १८-१९ में है और आहारादि पास में रखने का निषेध अन्य अनेक आगमों में है। जिसके लिए इसी उद्देशक के सूत्र ७७ का विवेचन देखें । रात्रि में खाने से या रात्रि में रखे हुए पदार्थ दिन में खाने से भी मूलगुण रूप रात्रिभोजनविरमण व्रत का भंग होता है ।
- इन सभी प्रकार के रात्रिभोजन का सूत्र ७३ से ७६ तक चौभंगी के द्वारा प्रायश्चित्त कहा है ।
प्रस्तुत सूत्र में पुनः रात्रिभोजन सम्बन्धी प्रायश्चित्त कहा गया है, इसका कारण यह है कि अशन, पान आदि पदार्थ भूख-प्यास को शांत करने वाले होते हैं किन्तु लवणादि पदार्थों में यह गुण नहीं होता है । इस भिन्नता के कारण इनका प्रायश्चित्त पृथक् कहा गया है । शब्दों की व्याख्या
पिप्पल-औषषि विशेष-पीपर। -प्राकृत हिन्दी कोष पृ. ५८ मिरीयं-मिर्च । यह अनेक प्रकार की होती है-लाल मिर्च, काली मिर्च, सफेद मिर्च ।
अनेक प्रतियों में 'मिरीयं वा मिरीय-चुण्णं वा' ये शब्द नहीं मिलते हैं किन्तु चूर्णिकार के सामने ये शब्द मूल पाठ में थे, ऐसा प्रतीत होता है, अतः इन शब्दों को मूल पाठ में रखा गया है ।
पीपर और मिर्च ये दोनों सचित्त पदार्थ हैं, किन्तु अनेक जगह ये शस्त्रपरिणत भी मिलते हैं। सिंगबेरं-अदरख । सूखने पर इसे सोंठ कहा जाता है, जो अचित्त होती है। इन तीनों का अचित्त चूर्ण भी अनेक जगह स्वाभाविक रूप से उपलब्ध हो सकता है । बिलं वा लोणं-पकाया हुआ नमक। उभियं वा लोणं-अन्य शस्त्रपरिणत नमक।
ये दोनों प्रकार के नमक अचित्त हैं । आगम में सचित्त नमक के साथ इन दो प्रकार के नमक का नाम नहीं आता है । दशवै. अ. ३, गा. ८ में ६ प्रकार के सचित्त नमक ग्रहण करने व खाने को अनाचार कहा है, यथा
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