________________
तेरहवाँ उद्देशक ]
[ ३८७
५. जो भिक्षु सचित पृथ्वी पर खड़े रहना, सोना या बैठना आदि करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है ।
६. जो भिक्षु सचित्त शिला पर खड़े रहना, सोना या बैठना आदि करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है ।
७. जो भिक्षु सचित्त शिलाखंड या पत्थर आदि पर खड़े रहना, सोना या बैठना श्रादि करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है ।
८. जो भिक्षु घुन या दीमक लगे हुए जीवयुक्त काष्ठ पर तथा अण्डों से यावत् मकडी के जालों से युक्त स्थान पर खड़े रहना, सोना या बैठना आदि करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है । ( उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त आता है | )
विवेचन - इन सूत्रों का विवेचन और शब्दों की व्याख्या उद्देशक ७, सूत्र ६८ से ७५ तक के आठ सूत्रों में की जा चुकी है ।
अनावृत ऊँचे स्थानों पर खड़े रहने आदि का प्रायश्चित्त
९. जे भिक्खू थूणंसि वा, गिहेलुयंसि वा, उसुयालंसि वा, कामजलंसि वा, दुब्बद्धे दुण्णिखित्ते, अनिकंपे चलाचले ठाणं वा, सेज्जं वा निसीहियं वा चेएइ, चेएतं वा साइज्जइ ।
१०. जे भिक्खू कुलियंसि वा, भित्तिसि वा, सिलंसि वा लेलुंसि वा, अंतरिक्खजायंसि, दुब्बद्धे, दुण्णिखित्ते, अनिकंपे, चलाचले ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेएइ, चेएतं वा साइज्जइ ।
११. जे भिक्खू खंधसि वा, फलिहंसि वा, मंचंसि वा, मंडवंसि वा, मालंसि वा, पासायंसि वा, हम्मतसि वा, अंतरिक्खजायंसि दुब्बद्धे दुण्णिखित्ते, अनिकंपे, चलाचेले ठाणं वा, सेज्जं वा, निसीहियं वा चेएइ, चेतं वा साइज्जइ ।
९. जो भिक्षु स्तम्भ, देहली, ऊखल अथवा स्नान करने की चौकी आदि जो कि स्थिर न हों, अच्छी तरह रखे हुए न हों, निष्कम्प न हों किन्तु चलायमान हों उन पर खड़े रहना, सोना या बैठना आदि करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है ।
१०. जो भिक्षु सोपान, भींत, शिला या शिलाखण्ड - पत्थरादि आकाशीय (अनावृत ऊंचे) स्थान, जो कि स्थिर न हों, अच्छी तरह रखे हुए न हो, निष्कम्प न हों किन्तु चलायमान हों उन पर खड़े रहना, सोना या बैठना आदि करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है ।
११. जो भिक्षु स्कन्ध पर, फलक पर, मंच पर, मण्डप पर, माल पर, प्रासाद पर, हवेली के शिखर पर इत्यादि जो आकाशीय (अनावृत ऊंचे) स्थल जो कि अस्थिर हों, अच्छी तरह बने हुए न हों, निष्कम्प न हों किन्तु चलायमान हों वहाँ पर खड़े रहना, सोना या बैठना आदि करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है । ( उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त प्राता है | )
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org