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चौदहवां उद्देशक]
[३१७ विवेचन-पात्र यदि दिखने में विद्रूप हो किन्तु उपयोग में आने योग्य हो तो उसे सुन्दर बनाने के लिए किसी प्रकार का प्रयत्न नहीं करना चाहिए।
पात्र यदि अत्यन्त सुन्दर मिला हो तो उसे दूसरा कोई माँग न ले या प्राचार्यादि स्वयं न ले ले अथवा कोई चुरा न ले जाए, ऐसी भावना से पात्र को विद्रूप करने का प्रयत्न भी नहीं करना चाहिए।
__संयम-आराधना में उक्त दोनों प्रकार के संकल्प एवं प्रयत्न अनावश्यक हैं । अतः भिक्षु को इस प्रकार की प्रवृत्ति नहीं करनी चाहिए। पात्र परिकर्म करने के प्रायश्चित्त
१२. जे भिक्खू "नो नवए मे पडिग्गहे लद्धे" ति कटु बहुदेसिएण सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा उच्छोलेंतं वा पधोएंत वा साइज्जइ ।
१३. जे भिक्खू "नो नवए मे पडिग्गहे लद्धे" त्ति कटु बहुदेवसिएण सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा साइज्जइ ।
१४. जे भिक्खू "नो नवए मे पडिग्गहे लद्धे" त्ति कटु बहुदेसिएण लोद्धेण वा जाव वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वल्लेज्ज वा उल्लोलेंतं वा उव्वलेतं वा साइज्जइ।
१५. जे भिक्खू "नो नवए मे पडिग्गहे लद्धे" ति कट्ट बहुदेवसिएण लोद्धेण वा जाव वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वलेज्ज वा उल्लोलेंतं वा उव्वलेतं वा साइज्जइ ।
१६. जे भिक्खू "दुब्भिगंधे मे पडिग्गहे लद्धे" ति कटु बहुदेसिएण सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा साइज्जइ ।
१७. जे भिक्खू "दुभिगंधे मे पडिग्गहे लद्धे" ति कटु बहुदेवसिएण सीओदगवियडेण वा उसिणोदगवियडेण वा उच्छोलेज्ज वा पधोएज्ज वा उच्छोलेंतं वा पधोएंतं वा साइज्जइ ।
१८. जे भिक्खू "दुन्भिगंधे मे पडिग्गहे लद्धे" त्ति कटु बहुदेसिएण लोद्धेण वा जाव वण्णेण वा उल्लोलेज्ज वा उन्वलेज्ज वा उल्लोलेंतं वा उव्वलेतं वा साइज्जइ ।
१९. जे भिक्खू "दुभिगंधे मे पडिग्गहे लद्धे" ति कटु बहुदेवसिएण लोद्धेण वा जाव वणेण वा उल्लोलेज्ज वा उव्वलेज्ज वा उल्लोलेंतं वा उव्वलेतं वा साइज्जइ ।
१२. जो भिक्षु "मुझे नया पात्र नहीं मिला है" ऐसा सोचकर पात्र को अल्प या बहुत अचित्त शीत जल से या अचित्त उष्ण जल से एक बार या बार-बार धोता है या धोने वाले का अनुमोदन करता है।
१३. जो भिक्षु "मुझे नया पात्र नहीं मिला है ऐसा सोचकर पात्र को रात रखे हुए अचित्त शीत जल से या अचित्त उष्ण जल से एक बार या बार-बार धोता है या धोने वाले का अनुमोदन करता है।
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