________________
पन्द्रहवां उद्देशक
[ ३३१
६९. जो भिक्षु चबूतरे पर, अट्टालिका में, चरिका में, प्राकार पर, द्वार में, गोपुर में मल-मूत्र का परित्याग करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है ।
७०. जो भिक्षु जल मार्ग में, जलपथ में, जलाशय के तीर पर, जलस्थान पर मल-मूत्र का परित्याग करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है ।
७१. जो भिक्षु शून्य गृह में, शून्य शाला में, टूटे घर में टूटी शाला में, कूटागार में, कोष्ठागार में मल-मूत्र का परित्याग करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है ।
७२. जो भिक्षु तृण - गृह में, तृणशाला में, तुस - गृह में, तुसशाला में, भुस -गृह में भुसशाला में मल-मूत्र का परित्याग करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है ।
}
७३. जो भिक्षु यानशाला में, यानगृह में, वाहन - शाला में वाहन गृह में मल-मूत्र का परित्याग करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है ।
७४. जो भिक्षु विक्रयशाला में या विक्रयगृह में परिव्राजकशाला में या परिव्राजक - गृह में, चूना प्रादि बनाने की शाला में या गृह में मल-मूत्र का परित्याग करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है ।
७५. जो भिक्षु बैल-शाला में या बैल-गृह में, महाकुल में या महागृह में मल-मूत्र का परित्याग करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है । [ उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त प्राता है । ] विवेचन- -इन नौ सूत्रों में ४६ स्थानों का कथन है । इन स्थानों में कुछ स्थान व्यक्तिगत हैं और कुछ सार्वजनिक स्थान हैं। इन स्थानों के स्वामी या रक्षक भी होते हैं । ऐसे स्थानों में मलमूत्र त्यागने का सर्वथा निषेध होता है । इसलिए ऐसे स्थानों में मल-मूत्र त्यागने से भिक्षु के तीसरे महाव्रत में दोष लगता है और जानकारी होने पर उस साधु की है, साथ ही समस्त साधुत्रों एवं संघ की निंदा होती है । किसी के अनेक प्रकार के अशिष्ट व्यवहार भी हो सकते हैं ।
सभ्यता एवं मूर्खता प्रगट होती कुपित होने पर उस साधु के साथ
अतः भिक्षु को सूत्रोक्त स्थानों पर मल-मूत्र का त्याग नहीं करना चाहिए ।
इनमें से यदि कोई सार्वजनिक स्थान जनता के मल-मूत्र त्यागने का बन चुका है तो उस स्थान पर भिक्षु को विधिपूर्वक मल-मूत्र त्याग करने पर कोई प्रायश्चित्त नहीं आता है ।
इनमें से यदि किसी व्यक्तिगत स्थान के स्वामी ने भिक्षुत्रों को उसमें मल-मूत्र त्यागने की आज्ञा दे दी हो तो जीव आदि से रहित योग्य भूमि में भिक्षु विवेक पूर्वक मल-मूत्र परठ सकता है । उस प्राज्ञाप्राप्त स्थान में मल-मूत्र परठने पर सूत्रोक्त प्रायश्चित्त नहीं आता है ।
तीसरे उद्देश्क में भी कई स्थलों पर मल-मूत्र परठने सम्बन्धी प्रायश्चित्त का कथन है। वहां भी इसी आशय से प्रायश्चित्त कहे गए हैं ।
ऐसे स्थलों में यद्यपि मल-मूत्रसूचक "उच्चार- प्रस्रवण " इन दोनों शब्दों का प्रयोग है
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org