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[निशीथसूत्र [सूत्र १६ से ६९] के समान पूरा पालापक जानना यावत् जो भिक्षु अन्यतीथिक या गृहस्थ से ग्रामानुग्राम विहार करते हुए अपना मस्तक ढंकवाता है या ढंकवाने वाले का अनुमोदन करता है । [उसे लघुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है ।]
विवेचन-भिक्षु यदि गृहस्थ से शारीरिक परिचर्या करावे तो उसे सूत्रोक्त प्रायश्चित्त प्राता है । यहां ५४ सूत्रों का विवेचन तीसरे उद्देशक के समान समझे । अकल्पनीय स्थानों पर मल-मूत्र-परिष्ठापन का प्रायश्चित्त
६७. जे भिक्खू आगंतागारंसि वा, आरामागारंसि वा, गाहावइकुलंसि वा, परियावसहंसि वा उच्चार-पासवणं परिट्ठवेइ परिट्ठवेंतं वा साइज्जइ ।
६८. जे भिक्खू उज्जाणंसि वा, उज्जाणगिहंसि वा, उज्जाणसालंसि वा, निज्जाणंसि वा, निज्जाणगिहंसि वा, निज्जाणसालंसि वा उच्चार-पासवणं परिट्ठवेइ, परिवेंतं वा साइज्जइ ।
६९. जे भिक्खू अट्टसि वा, अट्टालयंसि वा, चरियंसि वा, पागारंसि वा, दारंसि वा, गोपुरंसि वा उच्चार-पासवणं परिढुवेइ, परिवेंतं वा साइज्जइ ।
७०. जे भिक्खू दगमग्गंसि वा, दगपहंसि वा, दगतीरंसि वा दगट्ठाणंसि वा उच्चार-पासवणं परिट्ठवेइ, परिवेतं वा साइज्जइ।
७१. जे भिक्खू सुन्नगिहंसि वा, सुन्नसालंसि वा, भिन्नगिहंसि वा, भिन्नसालंसि वा, कूडागारंसि वा, कोट्ठागारंसि वा उच्चार-पासवणं परिवेइ, परिवेंतं वा साइज्जइ ।
७२. जे भिक्खू तणगिहंसि वा, तणसालंसि वा, तुसगिहंसि वा, तुससालंसि वा, भुसगिर्हसि वा, भुससालंसि वा उच्चार-पासवणं परिट्ठवेइ, परिवेंतं वा साइज्जइ ।
७३. जे भिक्खू जाणसालंसि वा, जाणगिहंसि वा, वाहणगिहंसि वा, वाहणसालंसि वा उच्चार-पासवणं परिदृवेइ, परिवेंतं वा साइज्जइ।
७४. जे भिक्खू पणियसालंसि वा, पणियगिहंसि वा, परियासालंसि वा, परियागिहंसि वा, कुवियसालंसि वा, कुविय गिहंसि वा उच्चार-पासवणं परिटवेइ परिद्ववेतं वा साइज्जइ ।
७५. जे भिक्खू गोणसालंसि वा, गोणगिहंसि वा, महाकुलंसि वा, महागिहंसि वा उच्चारपासवणं परिटवेइ, परिवेंतं वा साइज्जइ ।
६७. जो भिक्षु धर्मशाला में, उद्यान में, गाथापतिकुल में या परिव्राजक के आश्रम में मल-मूत्र का परित्याग करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है।
६८. जो भिक्षु उद्यान में, उद्यानगृह में, उद्यानशाला में, नगर के बाहर बने हुए स्थान में, नगर के बाहर बने हुए घर में, नगर के बाहर बनी हुई शाला में मल-मूत्र का परित्याग करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है ।
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