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चौदहवां उद्देशक]
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७. जो भिक्षु बाल साधु-साध्वी के लिए अथवा वृद्ध साधु-साध्वी के लिए जिनके कि हाथ, पैर, कान: नाक, होंठ कटे हुए हैं अथवा जो अशक्त है, उसे अतिरिक्त पात्र रखने की अनुज्ञा नहीं देता है या नहीं देने वाले का अनुमोदन करता है । (उसे लघुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है ।)
विवेचन-पूर्व सूत्र में आवश्यकता से अधिक लाये गये सामान्य पात्र सम्बन्धी वर्णन है । इन सूत्रों में कल्पमर्यादा से अधिक पात्र रखने के लिए देने का वर्णन है ।
भाष्य गाथा ४५२४ तथा उसकी चूणि में कहा गया है कि दो प्रकार के पात्र तीर्थंकरों के द्वारा अनुज्ञात हैं, यथा-१. पात्र, २. मात्रक । इस के सिवाय तीसरा पात्र ग्रहण करना 'अतिरिक्त पात्र' है । पात्र एवं मात्रक की संख्या विषयक विवेचन सोलहवें उद्देशक में देखें ।
खड़क-खुडिका-नौ वर्ष की उम्र से लेकर १६ वर्ष की उम्र तक के साधु या साध्वी बालक वय वाले कहे जाते हैं । इनको पागम में 'खुड्डग' या 'डहर' कहा गया है ।
थेर-स्थविर स्थविर तीन प्रकार के कहे गये हैं-१. उम्र से, २. ज्ञान से, ३. संयम पर्याय से । यहाँ पर केवल ६० वर्ष की उम्र वाले स्थविर का ही कथन समझना चाहिए।
हत्यछिन्न आदि-सूत्र में हाथ, पाँव, अोष्ठ, नाक और कान कटे हुए का कथन है । इनका तात्पर्य यह कि किसी भी प्रकार से विकलांग हो, यथा-अन्धा, बहरा, लंगड़ा आदि । यद्यपि ऐसे विकलांगों को दीक्षा नहीं दी जाती है तथापि संयम लेने के बाद भी किसी कारण से कोई विकलांग हो सकता है, यहाँ इसी अपेक्षा से यह कथन समझना चाहिए।
असक्क-अशक्त–जो भिक्षु विकलांग तो नहीं है किन्तु अशक्त है अर्थात् निरन्तर विहार से थके हुए, रोग से घिरे हुए या अन्य किसी परीषह से घबराये हुए साधु या साध्वी को यहाँ अशक्त कहा गया है ।
इस सूत्र का भावार्थ दो प्रकार से किया जा सकता है
१. बालक या वृद्ध साधु-साध्वी जो अशक्त हो या विकलांग हो उसे अतिरिक्त पात्र दिया जा सकता है किन्तु तरुण साधु-साध्वी को और अविकलांग सशक्त बाल-वृद्ध को अतिरिक्त पात्र नहीं दिया जा सकता।
२. आदि एवं अन्त के कथन से मध्य का ग्रहण हो जाता है, इस न्याय से आबाल-वृद्ध कोई भी साधु-साध्वी विकलांग या अशक्त हो तो उसे अतिरिक्त पात्र दिया जा सकता है किन्तु सशक्त और अविकलांग को नहीं दिया जा सकता। क्योंकि विकलांग या रोगग्रस्त, तरुण साधु-साध्वी भी बाल एवं वृद्ध के समान ही अनुकम्पा के योग्य होते हैं । रोग आदि से तरुण भी अशक्त हो जाता है।
विकलांग व अशक्त को अतिरिक्त पात्र देने का कारण यह है कि उसके औषधोपचार, पथ्यपरहेज आदि के लिए अतिरिक्त पात्र आवश्यक होता है । मल, मूत्र या कफ आदि परठने के लिए अलग-अलग पात्र आवश्यक होते हैं, अथवा विकलांग होने के कारण या अशक्ति के कारण पात्र फूट जाने की सम्भावना अधिक रहती है और वह स्वयं गवेषण करके नहीं ला सकता है, तब वह अतिरिक्त पात्र से अपना कार्य कर सकता है ।
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