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[ निशीथसूत्र
३४. जे भिक्खू पडिग्गहाओ पुढविकायं नोहरइ, नोहरावेइ, नीहरियं आहट्टु बेज्जमाणं डिग्गाइ, पडिग्गा वा साइज्जइ ।
३२२]
३५. जे भिक्खू पडिग्गहाओ आउक्कायं नीहरइ, नीहरावेइ, नोहरियं आहट्टु देज्जमाणं डिग्गाes, पडिग्गातं वा साइज्जइ ।
३६. जे भिक्खू पडिग्गहाओ तेउक्कायं नीहरइ, नोहरावेइ, नीहरियं आहट्टु वेज्जमाणं डिग्गाes, पडिग्गार्हतं वा साइज्जइ ।
३१.
जो भिक्षु पात्र से त्रस प्राणियों को निकालता है, निकलवाता है अथवा निकाल कर को लेता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है ।
देते हु
३२. जो भिक्षु पात्र से गेहूं आदि धान्य को और जीरा आदि बीज को निकालता है, निकलवाता है अथवा निकालकर देते हुए को लेता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है ।
३३. जो भिक्षु पात्र से सचित्त कन्द, मूल, पत्र, पुष्प, फल निकालता है, निकलवाता है अथवा निकाल कर देते हुए को लेता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है ।
३४. जो भिक्षु पात्र से सचित्त पृथ्वीकाय को निकालता है, निकलवाता है अथवा निकाल हुए को लेता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है ।
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३५. जो भिक्षु पात्र से सचित्त अप्काय को निकालता है, निकलवाता है अथवा निकाल कर देते हुए को लेता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है ।
३६. जो भिक्षु पात्र से सचित्त अग्निकाय को निकालता है, निकलवाता है अथवा निकाल को लेता है या लेने वाले का अनुमोदन करता है । [ उसे लघुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त
कर देते हुए प्राता है ।]
विवेचन - पात्र की गवेषणा करते समय निम्नांकित बातों का ध्यान रखना आवश्यक है
१. पात्र में यदि मकड़ी आदि त्रस जीव हों तो नहीं लेना ।
२. उसमें धान्य या बीज रखे हुए हों तो नहीं लेना ।
३. उसमें कंद-मूल आदि वनस्पति हों तो नहीं लेना । ४. उसमें नमक आदि सचित्त पृथ्वीकाय हो तो नहीं लेना । ५. उसमें सचित्त जल हो तो नहीं लेना ।
६. मिट्टी के पात्र में अग्नि [ खीरा आदि ] हो तो नहीं लेना ।
७. इन जीवों या पदार्थों को स्वयं निकाल करके पात्र नहीं लेना । ८. गृहस्थ इन्हें निकाल कर देवे तो भी नहीं लेना ।
ऐसा अकल्पनीय पात्र ग्रहण करने पर इन सूत्रों से प्रायश्चित्त प्राता है ।
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