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तेरहवाँ उद्देशक ]
३९. जे भिक्खू फाणिए अप्पाणं देहइ, देहंतं वा साइज्जइ ।
४०. जे भिक्खू मज्जए अप्पाणं देहइ, देहंतं वा साइज्जइ ।
४. जे भिक्खू बसाए अप्पानं देहइ, देहंतं वा साइज्जइ ।
३१. जो भिक्षु पात्र में अपना प्रतिबिम्ब देखता है या देखने वाले का अनुमोदन करता है । ३२. जो भिक्षु अरीसा में अपना प्रतिबिम्ब देखता है या देखने वाले का अनुमोदन
करता है ।
३३. जो भिक्षु तलवार में अपना प्रतिबिम्ब देखता है या देखने वाले का अनुमोदन
करता है ।
३४. जो भिक्षु मणि में अपना प्रतिबिम्व देखता है या देखने वाले का अनुमोदन करता है । ३५. जो भिक्षु कुडे आदि के पानी में अपना प्रतिबिम्ब देखता है या देखने वाले का अनुमोदन करता है ।
३६. जो भिक्षु तेल में अपना प्रतिबिम्ब देखता है या देखने वाले का अनुमोदन करता है ।
३७. जो भिक्षु मधु (शहद) में अपना प्रतिबिम्ब देखता है या देखने वाले का अनुमोदन
करता है ।
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३८. जो भिक्षु घी में अपना प्रतिबिम्ब देखता है या देखने वाले का अनुमोदन करता है । ३९. जो भिक्षु गीले गुड़ में अपना प्रतिबिम्ब देखता है या देखने वाले का अनुमोदन
करता है ।
४०. जो भिक्षु मद्य में अपना प्रतिबिम्ब देखता है या देखने वाले का अनुमोदन करता है ।
४१ जो भिक्षु चरबी में अपना प्रतिबिम्ब देखता है या देखने वाले का अनुमोदन करता है । ( उसे लघुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त आता है ।)
विवेचन - यहाँ बारह सूत्रों से बारह पदार्थों में अपना प्रतिबिम्ब देखने का प्रायश्चित्त कहा है । पात्र शब्द से साधु के पात्रों का एवं गृहस्थ के बर्तनों का कथन है । सूत्र में कहे गये तेल, घी, गुड़ भिक्षा में ग्रहण किये हुए हो सकते हैं । मधु, वशा कभी श्रोषध निमित्त से ग्रहण किये हुए हो सकते हैं । अन्य तलवार, अरीसा, मद्य आदि साधु ग्रहण नहीं करता है किन्तु भिक्षा के लिए गृहस्थ के घर में प्रवेश करने पर वहाँ उनमें मुख देखना सम्भव हो सकता है । भाष्य में सूत्रगत शब्दों का संग्रह इस प्रकार किया है
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"दप्पण मणि आभरणे, सत्थ दए भायणऽन्नतरए य । तेल्ल - महु - सप्पि फाणित, मज्ज - वसा - सुत्तमादीसु ॥ ४३१८ ॥
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