________________
तेरहवां उद्देशक]
[३०७ क्रोपिंड-कुपित होकर आहारादि लेना या आहारादि न देने पर श्राप देने का भय दिखाकर आहारादि लेना।
मानपिंड-भिक्षा न देने पर कहना कि 'मैं भिक्षा लेकर रहूँगा।' तदनन्तर बुद्धि प्रयोग करके घर के अन्य सदस्य से भिक्षा प्राप्त करना।
मायापिंड-रूप परिवर्तन करके छलपूर्वक भिक्षा प्राप्त करना ।
लोपिंड-इच्छित वस्तु मिलने पर विवेक न रखते हुए अति मात्रा में लेना या इच्छित वस्तु न मिले वहाँ तक घूमते रहना, अन्य कल्पनीय वस्तु भी नहीं लेना ।
चिकित्सापिंड-गृहस्थ के पूछने पर या बिना पूछे ही किसी रोग के विषय में औषध आदि के प्रयोग बताकर भिक्षा प्राप्त करना अथवा मेरा अमुक रोग अमुक दवा या वैद्य से ठीक हुआ था ऐसा कहकर भिक्षा प्राप्त करना चिकित्सापिंड है।
विद्या, मंत्र, चूर्ण, योग के प्रयोग से आहार प्राप्त करना, अदृश्य रहकर आहार प्राप्त करना तथा निमित्त बताकर आहार प्राप्त करना भी 'उत्पादना' दोष है और इनके सेवन से लघुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है । 'विद्या' आदि पदों की व्याख्या इसी उद्देशक में की गई है, वहाँ से समझ लेना चाहिये।
इन दोषों के सेवन में दाता के अनुकूल हो जाने पर वह उद्गम दोष लगा सकता है और प्रतिकूल हो जाने पर साधु की अवहेलना या निन्दा कर सकता है, जिससे धर्म की तथा जिनशासन की अपकीर्ति होती है।
___ इन पन्द्रह सूत्रों में कहे गये पन्द्रह दोषस्थानों के सेवन में दीनवृत्ति का सेवन होता है । जबकि भिक्षु सदा अदीनवृत्ति से एषणासमिति का पालन करने वाला कहा गया है, अत: उसे इन प्रवृत्तियों द्वारा आहार प्राप्ति का संकल्प भी नहीं करना चाहिये।
नियुक्तिकार ने उत्पादना के 'मूलकर्म' दोष का गुरुचौमासी प्रायश्चित्त कहा है, और पूर्वपश्चात् संस्तवदोष का दूसरे उद्देशक में लघुमासिक प्रायश्चित्त कहा गया है । उत्पादना के शेष दोषों का लघुचौमासी प्रायश्चित्त इन सूत्रों में कहा है। तेरहवें उद्देशक का सारांश१८. सचित्त पृथ्वी के निकट की भूमि पर, स्निग्ध, सचित्त रजयुक्त पृथ्वी पर, सचित्त
मिट्टीयुक्त-पृथ्वी पर, सचित्त पृथ्वी पर, शिला या पत्थर पर तथा जीवयुक्त
काष्ठ या भूमि पर खड़ा रहना, बैठना या सोना। ९-११ भित्ति आदि से अनावृत्त ऊँचे स्थानों पर खड़े रहना, बैठना या सोना ।
__ गृहस्थ को शिल्प आदि सिखाना। १३-१६ गृहस्थ को सरोष, रूक्ष वचन कहना या अन्य किसी प्रकार से उसको आशातना
करना। १७-१८ गृहस्थ के कौतुककर्म या भूतिकर्म करना ।
१२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org