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[निशीथसूत्र
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मनोहर रूपों में आसक्त होना । प्रथम प्रहर में ग्रहण किया हुअा अाहार चतुर्थ प्रहर में खाना ।
दो कोश से आगे ले जाकर आहार-पानी का उपयोग करना । ३४-४१ गोबर या लेप्य पदार्थ रात्रि में लगाना या रात से रखकर दिन में लगाना । ४२-४३ गृहस्थ से उपधि वहन कराना तथा उसे आहार देना। ४४ बड़ी नदियों को महिनें में एक बार से अधिक उतर कर या तैर कर पार करना।
इत्यादि प्रवृत्तियाँ करने पर लघुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है । इस उद्देशक के २९ सूत्रों के विषयों का कथन निम्न आगमों में है, यथा
बारंबार प्रत्याख्यान भंग करना शबलदोष है। -दशा. द. २ सचित्त पदार्थ मिश्रित आहार खाने का निषेध । -प्राचा. श्रु. २ अ. १ उ. १ सरोम चर्म के लेने का निषेध । -बृहत्कल्प उ. ३ पांच स्थावर कायों की विराधना करने का निषेध । -दशवै. अ. ४ तथा अ. ६
-आचा. श्रु. १ अ. १ उ. २-७ वृक्ष पर चढने का निषेध ।
-आचा. श्रु. २ अ. ३ उ. ३ गृहस्थ के बर्तन में खाने का निषेध ।
–दशवै. अ. ३ तथा अ. ६
-सूय. श्रु. १. अ. २ उ. २ गा. २० गृहस्थ का वस्त्र उपयोग में लेने का निषेध । -सूय. श्रु. १ अ. ९ गा. २० गृहस्थ के खाट पलंग आदि पर बैठने का निषेध। -दशवै. अ. ३ तथा अ. ६
-सूय. श्रु.१ अ. ९ गा.२१ गहस्थ की चिकित्सा करने का निषेध । -दशवै. अ. ३ तथा अ. ८ गा. ५०
-उत्तरा. अ. १५ गा. ८ पूर्वकर्मदोष युक्त आहार ग्रहण करने का निषेध। -प्राचा. श्रु. २ अ. १ उ. ६ १६-३१ दर्शनीय स्थलों में जाने का तथा मनोहर रूपों में आसक्ति करने का निषेध ।
--प्राचा. श्रु. २ अ. १२ ३२-३३ प्रथम प्रहर में ग्रहण किये हुए आहार को चौथे प्रहर में खाने का निषेध तथा दो कोश उपरांत आहार ले जाने का निषेध ।
-बृहत्कल्प उ. ४ ४४ बड़ी नदियों को पार करने का निषेध । -दशा. द. २, बृहत्कल्प उ. ४ इस उद्देशक के १५ सूत्रों के विषयों का कथन अन्य आगमों में नहीं है, यथा१-२ रस्सी आदि से पशुओं को बांधना खोलना नहीं ।
गृहस्थ के वस्त्र से अच्छादित पीढ आदि पर बैठना नहीं ।
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