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सूत्र ७०
सूत्र ८३-८४ सूत्र =६-८९
सूत्र ७३,७६,७८ रात्रि में श्राहार रखना या खाना अनेक सूत्रों में निषिद्ध है ।
विरोधी राज्यों के बीच बारंबार गमनागमन करना ।
सूत्र ६
सूत्र ६-६२ सूत्र ६३-६८
सूत्र ६९
सूत्र ७१-७२ सूत्र ७७
सूत्र ७९
सूत्र ८०
सूत्र ८१-८२
सूत्र ८५
सत्र ९१
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- बृहत्कल्प उ. १, सू. ३९
[निशयसूत्र
दीक्षा या बड़ी दीक्षा आदि के प्रयोग्य का कथन । साध्वी के स्थान पर साधु को रहने आदि का निषेध |
-स्थल के लिये विवेचन देखें ।
बृहत्कल्पसूत्र उ. ४
सूत्र ९०
नमक आदि के संग्रह का निषेध |
इस उद्देशक के ७१ सूत्रों के विषय का कथन अन्य आगमों में नहीं है, यथाविकट स्थिति में अर्द्धयोजन के आगे से लाया पात्र लेना ।
गृहस्थ का शारीरिक परिकर्म करना ।
स्व-पर को भयभीत करना, विस्मित करना, विपरीत अवस्था में करना
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-- बृहत्कल्पसूत्र उ. ३ - दश. प्र. ६, गा. १८-१९
या कहना ।
जो जिस धर्मवाला हो उसके सामने उसके धर्म तत्त्वों की प्रशंसा करना अथवा उसकी झूठी प्रशंसा करना ।
दिवसभोजन की निन्दा व रात्रिभोजन की प्रशंसा करना ।
नागाढ परिस्थिति में रात्रि में प्रशनादि रखना । संखडी के प्रहारार्थ उपाश्रय का परिवर्तन करना । नैवेद्यपिंड खाना ।
स्वच्छंदाचारी की प्रशंसा, वंदना करना । अयोग्य से सेवाकार्य कराना ।
आत्मघात (बालमरणों) की प्रशंसा करना । ॥ ग्यारहवां उद्देशक समाप्त ॥
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