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बारहवां उद्देशक]
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प्रत्याख्यान-भंग करने का प्रायश्चित्त
३-जे भिक्खू अभिक्खणं-अभिक्खणं पच्चक्खाणं भंजइ भंजंतं वा साइज्जइ ।
३-जो भिक्षु बारंबार प्रत्याख्यान भंग करता है या भंग करने वाले का अनुमोदन करता है। [ उसे लघुचातुर्मासिक प्रायश्चित्त पाता है। ]
विवेचन-बारंबार प्रत्याख्यान के भंग करने को दशा. द. २ में शबलदोष कहा गया है । बारम्बार अर्थात् अनेक बार, यहां भाष्यकार ने कहा है कि तीसरी बार प्रत्याख्यान भंग करने पर यह सूत्रकथित प्रायश्चित्त आता है ।
यहां प्रत्याख्यान से उत्तरगुण रूप "नमुक्कार सहियं" आदि प्रत्याख्यान का अधिकार समझना चाहिये । अर्थात् 'नमुक्कार सहियं” आदि का संकल्प पूर्वक तीसरी बार भंग करने पर यह प्रायश्चित्त आता है।
प्रत्याख्यान-भंग करने से होने वाले दोष
"अपच्चओ य अवण्णो, पसंग दोसो य अदद्धृता धम्मे । माया य मुसावाओ, होइ पइण्णाइ लोवो य ॥
निशी. भाष्य, गा. ३९८८ १. “जो उत्तरगुण-प्रत्याख्यान का बारम्बार भंग करता है, वह मूलगुण-प्रत्याख्यानों का भी भंग करता होगा", इस प्रकार की अप्रतीति = अविश्वास का पात्र होता है ।
२. स्वयं उसका या संघ का अवर्णवाद होता है।
३. एक प्रत्याख्यान के भंग करने से अन्य मूलगुण-प्रत्याख्यानों के भंग होने की सम्भावना रहती है तथा अनेक दोषों की परम्परा बढ़ती है।
४. अन्य प्रत्याख्यानों में तथा श्रमणधर्म के पालन में भी दृढता नहीं रहती है।
५. प्रत्याख्यान कुछ करता है और आचरण कुछ करता है, जिससे माया का सेवन होता है । यथा-आयंबिल का प्रत्याख्यान करके एकाशना कर ले ।
६. कहता कुछ अन्य है और करता कुछ अन्य है, अतः मृषावाद दोष लगता है । यथा'मेरे आज एकाशन है, ऐसा कह कर दो बार खा लेता है।
७. अपने उस अवगुण को छिपाने के लिये कभी माया पूर्वक मृषा भाषण कर सकता है। ८. प्रत्याख्यान का भंग होने पर संयम की विराधना होती है।
९. बारम्बार प्रत्याख्यान भंग करने से कदाचित् कोई देव रुष्ट हो जाए तो विक्षिप्तचित्त कर सकता है।
प्रत्याख्यान के प्रति उपेक्षा भाव से एवं संकल्प पूर्वक अनेक बार प्रत्याख्यान भंग करने का यह प्रायश्चित्त है । किन्तु कदाचित् प्रत्याख्यानसूत्र में कथित आगारों का सेवन किया जाये तो प्रत्याख्यान भंग नहीं होता है किन्तु उसकी आलोचना गीतार्थ भिक्षु के पास अवश्य कर लेनी
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