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दसवां उद्देशक
११. जो भिक्षु नवदीक्षित की दिशा का अपहार करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है।
१२. जो भिक्षु नवदीक्षित की दिशा को विपरिणामित करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है । (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।)
विवेचन-"दिशा-इति व्यपदेशः, प्रव्रजनकाले उपस्थापनकाले वा, यां आचार्य उपाध्यायो वा व्यपदिश्यते सा तस्य दिशा इत्यर्थः। तस्यापहारी-तं परित्यज्य अन्यं आचार्य-उपाध्यायं वा प्रतिपद्यते इत्यर्थः । संजतीए पवत्तिणी।" --चूर्णि
भावार्थ-प्रव्रज्या या उपस्थापना (बड़ी दीक्षा) के समय नवदीक्षित को जिस आचार्य, उपाध्याय के नेतृत्व का निर्देश किया जाता है वह उसकी “दिशा" कहलाती है। उन प्राचार्य, उपाध्याय के निर्देश को छुड़ाकर अन्य प्राचार्य, उपाध्याय का कथन करवाना यह उस शिष्य की दिशा का अपहरण करना कहलाता है।
इसी प्रकार साध्वी के लिये भी जिस प्रवर्तिनी का निर्देश करना हो, उसे दूसरी प्रवतिनी का निर्देश कर देना उसकी दिशा का अपहरण करना कहलाता है।
अपहरण में स्वयं अन्य आचार्य, उपाध्याय का निर्देश कर दिया जाता है और विपरिणमन में नवदीक्षित के विचारों में परिवर्तन कराया जाता है ।
सूत्र ९-१० में पूर्वदीक्षित शिष्य के अपहरण या भावपरिवर्तन का प्रायश्चित्त है और सूत्र ११-१२ में दीक्षार्थी के अपहरण या भावपरिवर्तन का प्रायश्चित्त है।
अपहरण और विपरिणमन ये दोनों भिन्न-भिन्न क्रियायें हैं, जो व्यक्ति से संबंध रखती हैं। अतः “सेह" का अर्थ "दीक्षित शिष्य" समझा जाता है, वैसे ही "दिस" दिशा जिसकी हो वह दिशावान् अर्थात् दीक्षार्थी । अतः "दिस" से दीक्षार्थी का अपहरण और विपरिणमन समझ लेना चाहिये । अज्ञात भिक्षु को आश्रय देने का प्रायश्चित्त
१३. जे भिक्खू बहियावासियं आएसं परं ति-रायाओ अविफालेत्ता संवसावेइ, संवसावेतं वा साइज्जइ।
१३. जो भिक्षु अन्य गच्छ के आये हुए (एकाकी) साधु को पूछताछ किये बिना तीन दिन से अधिक साथ में रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है । (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त पाता है।)
विवेचन-यदि आने वाला साधु परिचित है तो आने का कारण पूछना चाहिए । यदि अपरिचित है तो वह कहां से आया है ? कहां जाना चाहता है ? इत्यादि प्रश्न पूछकर पूरी जानकारी करके यथायोग्य करना चाहिये । क्योंकि अपरिचित व्यक्ति चोर, ठग, द्वेषी, राजा का अपराधी, मैथुनसेवी, छिद्रान्वेषो, हत्यारा या उत्सूत्रप्ररूपक आदि भी हो सकता है।
परिचित व्यक्ति से भी पूछताछ करना व्यवहार को अपेक्षा से आवश्यक है। जहाँ तक सम्भव हो उसी दिन जानकारी कर लेनी चाहिए । बीमारी आदि कारणों से ऐसा
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