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[निशोथसूत्र ८. जो भिक्षु अधर्म की प्रशंसा करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है । (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त अाता है।)
विवेचन–हिंसा, असत्य के समर्थक पापश्रुतों की, चरक-परिव्राजक आदि के पंचाग्नि तप
व्रतावशेषा का तथा हिसा आदि अठारह पापों की प्रशंसा करना अधर्मप्रशंसा है। अधर्म की प्रशंसा करने से उन पापकार्यों को करने की प्रेरणा मिलती है। जीवों के मिथ्यात्व का पोषण होता है । सामान्य व्यक्ति मिथ्यात्व की तरफ आकर्षित होते हैं।
अतः पाप या अधर्म की प्रशंसा करने का प्रसंग उपस्थित होने पर भिक्षु मौन रहे एवं उपेक्षा भाव रखे तथा अवसर देखकर शुद्ध धर्म का प्ररूपण करे । गृहस्थ का शरीर-परिकर्म-करण प्रायश्चित्त
९ से ६२. जे भिक्खू अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा पाए आमज्जेज्ज वा पमज्जेज्ज वा, आमज्जंतं वा पमज्जंतं वा साइज्जइ । एवं तइयउद्देसगमेण यव्वं जाव जे भिक्खू गामाणुगामं दूइज्जमाणे अण्णउत्थियस्स वा गारत्थियस्स वा सोसवारियं करेइ, करेंतं वा साइज्जइ।
९ से ६२. जो भिक्षु अन्यतीथिक या गृहस्थ के पैरों का एक बार या अनेक बार "अामर्जन" करता है या करने वाले का अनुमोदन करता है । इस प्रकार तीसरे उद्देशक के (सूत्र १६ से ६९) के समान आलापक जान लेने चाहिए यावत् जो भिक्षु ग्रामानुग्राम विहार करते समय अन्यतीथिक या गृहस्थ का मस्तक ढांकता है या ढांकने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।)
विवेचन-गृहस्थ-परिकर्म प्रायश्चित्त के ५४ सूत्र हैं। साधु के द्वारा गृहस्थ की सेवा करने पर इन सूत्रों से गुरुचौमासी प्रायश्चित्त प्राता है। इनका विवेचन उद्देशक ३ सूत्र १६ से ६९ तक में किया गया है । अतः वहां देखें। अन्यतीर्थिक तथा गृहस्थ का स्पष्टार्थ उ. १, सूत्र १५ के विवेचन में देखें। भयभीतकरण-प्रायश्चित्त
६३. जे भिक्खू अप्पाणं बीभावेइ, बीभावेंतं वा साइज्जइ । ६४. जे भिक्खू परं बीभावेइ, बीभावतं वा साइज्जइ । ६३. जो भिक्षु स्वयं को डराता है या डराने वाले का अनुमोदन करता है।
६४. जो भिक्षु दूसरे को डराता है या डराने वाले का अनुमोदन करता है । (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है ।)
विवेचन-भिक्षु को भूत, पिशाच, राक्षस, सर्प, सिंह, चोर आदि से स्वयं को भयग्रस्त बनाना या अन्य को भयभीत करने के लिये भयजनक वचन कहना योग्य नहीं है।
__ भाष्यकार ने बताया है कि इन भय-निमित्तों का अस्तित्व हो तो भयभीत करने पर लघुचौमासी प्रायश्चित आता है और विना अस्तित्व के ही भयभीत करने पर गुरुचौमासी प्रायश्चित्त प्राता है।
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