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ग्यारहवां उद्देशक ]
किसी का खरीदा हुआ या अन्य किसी कारण से दासत्व को प्राप्त । १२. दुष्ट - कषाय दुष्ट ( प्रति क्रोधी), विषयदुष्ट (विषयासक्त ) | १३. मूर्ख - - द्रव्यमूढ आदि अनेक प्रकार के मूर्ख - भ्रमित बुद्धि वाले । १४. कर्जदार - अन्य की सम्पत्ति उधार लेकर न देने वाला । १५. जुगित ( हीन ) - जाति से, कर्म से, शिल्प से हीन और शरीर से हीनांग ( जिसके नाक, कान, पैर, हाथ प्रादि कटे हुए हों) । १६. बद्ध - कर्म, शिल्प, विद्या, मंत्र आदि सीखने या सिखाने के निमित्त किसी के साथ प्रतिज्ञाबद्ध हो । १७. भृतक - दिवसभृतक यात्राभृतक आदि । १८. अपहृत - माता-पिता आदि की प्राज्ञा बिना प्रदत्त लाया हुआ बालक आदि । १९. गर्भवती - स्त्री । २०. बालवत्सा - दुधमुँ है बच्चे वाली स्त्री । भाष्य में इनके अनेक भेद प्रभेद किए हैं तथा इन्हें दीक्षा देने से होने वाले दोषों और उनके प्रायश्चित्तों के अनेक विकल्प कहे हैं ।
दीक्षा के प्रयोग्य इन २० प्रकार के व्यक्तियों का वर्णन निशीथभाष्य तथा अन्य व्याख्याग्रंथों में मिलता है । श्रागम में इस विषयक कथन बृहत्कल्पसूत्र उद्देशक चार में है । वहाँ तीन को दीक्षा देना आदि अकल्पनीय कहा है, यथा - १. पंडक, २. क्लीब ३. वातिक ।
बृहत्कल्पभाष्य में "वाइए" पाठ से "वातिक" की व्याख्या की गई है । किन्तु निशीथभाष्य में अयोग्यों के वर्णन में " वाहिए" शब्द कह कर व्याधिग्रस्त अर्थ किया है तथा नपुंसक के प्रभेदों में "वातिक" कहा है।
वातिक - वायुजन्य दोष से जो विकार को प्राप्त होता है एवं अनाचार - सेवन करने पर ही उपशांत होता है ।
क्लब - दृष्टि, शब्द, स्पर्श (ग्रालिंगन) या निमन्त्रण से विकार को प्राप्त होकर जिसके स्वतः वीर्य निकल जाता है ।
बृहत्कल्पसूत्र के मूल पाठ में “पंडक" (नपुंसक) से इन दोनों को अलग कहने का कारण है कि ये लिंग व वेद की अपेक्षा से पुरुष हैं किन्तु कालान्तर से नपुंसक भाव को प्राप्त हो जाते हैं । अतः पुरुष होते हुए भी इन्हें दीक्षा देने का निषेध किया गया है ।
यह
आगमविहारी प्रतिशयज्ञानी इन भाष्यवर्णित सभी को यथावसर दीक्षा दे सकते हैं ।
“बालवय” वाले को कारणवश गीतार्थ दीक्षा दे सकते हैं, ऐसा ठाणांग सूत्र अ० ५, सूत्र १०८ से फलित होता है ।
भाष्य-गाथा ३७३८ में बीस प्रकार के प्रयोग्यों में से कुछ को यथावसर दीक्षा दी भी जा सकती है, ऐसा बताया है किन्तु गीतार्थ को यह अधिकार अन्य गीतार्थ की सलाह से ही होता है । श्रन्यथा उसे भी प्रायश्चित्त प्राता है ।
दीक्षा के योग्य व्यक्ति
१. श्रार्यक्षेत्रोत्पन्न २. जातिकुलसम्पन्न ३. लघुकर्मी ४. निर्मलबुद्धि ५. संसार-समुद्र में मनुष्य भव की दुर्लभता, जन्म-मरण के दुःख, लक्ष्मी की चंचलता, विषयों के दुःख, इष्ट संयोगों का वियोग, आयु की क्षणभंगुरता, मरण पश्चात् परभव का प्रति रौद्र विपाक और संसार की असारता आदि भावों को जानने वाला ६. संसार से विरक्त ७. अल्पकषायी ८. अल्पहास्यादि ( कुतहलवृत्ति से रहित )
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