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[ निशीथ सूत्र
करने का निषेध किया गया है । प्रस्तुत चार सूत्रों में उन्हीं लोहे यादि के पात्रों को ग्रहण करने का प्रायश्चित्त कहा गया है ।
आचारांगसूत्र में लोहे से चर्म पर्यन्त कथन करने के साथ अन्य भी इस प्रकार के पात्र ग्रहण करने का निषेध किया है तथा इन्हें बहुमूल्य विशेषण से सूचित किया है ।
में
लकड़ी, तुम्वा व मिट्टी के पात्र भिक्षु की लघुता के सूचक हैं । भगवतीसूत्र श. ३, उ. १ तालितास के काष्ठ - पात्र ग्रहण करने का वर्णन है । उववाईसूत्र में तापस-परिव्राजक आदि के वर्णन में उनके लिए काष्ठ आदि तीन प्रकार के ही पात्र रखने का वर्णन है एवं अनेक प्रकार के पात्र रखने का निषेध है ।
काष्ठादि तीनों प्रकार के पात्र अल्पमूल्य एवं सामान्य जातीय होने से उनकी चोरी होने का भय नहीं रहता है । काष्ठ व तुम्बे के पात्र में वजन भी कम होता है ।
लोहे आदि के पात्र भारी तथा बहुमूल्य होते हैं, अतः इनका निषेध व प्रायश्चित्त कहा गया है।
वर्तमान में प्लास्टिक के पात्र भी साधु-साध्वी उपयोग में लेते हैं । प्लास्टिक को काष्ठ रस संयोग से निर्मित माना जाता है । प्लास्टिक के पात्र का वजन व मूल्य काष्ठपात्र से भी कम होता है । लोहे आदि के पात्र में होने वाले दोषों की इसमें सम्भावना नहीं है । किन्तु ये पात्र सभी प्रकार के खाद्य पदार्थ ग्रहण करने व रखने के योग्य नहीं होते हैं । अतः श्रागम निर्दिष्ट काष्ठादि पात्र के समान ये पूर्ण रूप से उपयोगी नहीं हैं ।
अतः
आचारांगसूत्र में निषिद्ध पात्रों के वर्णन में १७ जाति का नामोल्लेख है । जो प्रायः सभी प्रतियों में एक समान है । किन्तु प्रस्तुत प्रायश्चित्तसूत्र में जो उल्लेख है, वह विभिन्न प्रतियों में विभिन्न रूप से उपलब्ध है अर्थात् क्रम और नामों में भी कुछ-कुछ भिन्नता है ।
निशीथसूत्र की अनेक प्रतियों में कुल मिलाकर (२२) बावीस नाम आते हैं, जिनमें ( १२ ) बारह नाम सभी प्रतियों में समान हैं और (१०) दस नाम किसी में हैं, किसी में नहीं हैं ।
वे बारह नाम इस प्रकार हैं
१. श्रय - पायाणि, २. तंब - पायाणि, ३. तउय पायाणि, ४. सुवण्ण-पायाणि, ५. कंस पायाणि, ६. मणि-पायाणि, ७. दंत - पायाणि, सिंग पायाणि, ९. संख - पायाणि, १०. चम्म पायाणि, ११. चेलपायाणि, १२. वइर - पायाणि ।
८.
दस नाम इस प्रकार हैं
१. सीसग - पायाणि, २. रुप्प - पायाणि, ३. जायरूव-पायाणि, ४. कणग-पायाणि, ५. हिरण्णपायाणि, ६. रीरिय- पायाणि, ७. हारपुड पायाणि, ८. काय पायाणि ९ सेल-पायाणि, १०. अंकपायाणि ।
निशीथचूर्णि में चार-पांच नाम निर्दिष्ट हैं और एक दो शब्दों की व्याख्या है । आचारांगटीका में केवल एक शब्द की व्याख्या व नामनिर्देश है । इसलिये इन पाठान्तरों का कोई प्रामाणिक समाधान सम्भव नहीं है ।
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