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[निशीथसूत्र
२. समर्थ साधु संदेहयुक्त होकर आहार ग्रहण करता है। ३. असमर्थ साधु संदेहरहित होकर आहार ग्रहण करता है।
४. असमर्थ साधु संदेहयुक्त होकर आहार ग्रहण करता है। चरिणकार का कथन है
१. संथडिओ नाम हट्ठ-समत्यो,
२. वितिगिच्छा-विमर्षः-मतिविप्लुता संदेह इत्यर्थः, सा णिग्गता वितिगिच्छा जस्स सो निवितिगिच्छो भवति ।
३. अब्भादिएहि कारणेहिं अदिठे आइच्चे संका भवति-किं उदितो अणुदितो ति। अत्थमणकाले वि किं सूरो धरति न वा ति संका भवति । (सो वितिगिच्छाओ)।
४. छ ठ्ठमादिणा तवेण किलंतो असंथडो, गेलण्णेण वा दुब्बलसरीरो असंथडो, दोहद्धाणेण वा पज्जत्तं अलभंतो असंथडो।
१. संस्तृत अर्थात् स्वस्थ या समर्थ । २. निविचिकित्सा अर्थात् संदेहरहित ।
३. बादल आदि कारणों से सूर्य के नहीं दिखने पर शंका होती है कि सूर्योदय हुआ या नहीं अथवा सूर्यास्त के समय सूर्य है या अस्त हो गया, ऐसी शंका होती है।
४. बेले, तेले आदि तप से अशक्त बना हुआ, रुग्णता से दुर्बल शरीर वाला या लम्बे विहार में आहार के अलाभ से क्षुधातुर भिक्षु असंस्तृत कहलाता है।
विहार करते समय आगे आहार मिलने की सम्भावना न हो और रात्रि विश्राम जहाँ किया हो उस ग्राम के प्रायः सभी लोग प्रातःकाल ही खेत आदि के लिये जा रहे हों, ऐसे समय में समर्थ (स्वस्थ) साधु भी ग्रहण करने जा सकता है । इसी तरह दूसरे दिन आहारादि मिलने की सम्भावना न हो, ऐसे समय में शाम को भिक्षा लाने का प्रसंग उपस्थित हो सकता है।
असमर्थ (ग्लान) के लिये तो ऐसे अवसर सहज सम्भव हैं।
बादल या पहाड़ आदि से कभी-कभी सूर्योदय होने या सूर्यास्त न होने का आभास हो सकता है । फिर थोड़ी देर बाद सही स्थिति सामने आ जाती है ।
___ संदिग्ध या असंदिग्ध अवस्था में आहार ग्रहण करने के बाद यदि निर्णय हो जाए कि सूर्योदय नहीं हुआ या सूर्यास्त हो गया है, या ग्राहार ग्रहण करने के बाद सूर्योदय हुआ है तो वह आहार साधु को खाना नहीं कल्पता है । खाये जाने पर रात्रिभोजन का दोष लगता है तथा उसका गुरुचौमासी प्रायश्चित पाता है । अत: वह पाहार पात्र में हो या हाथ में हो या मुख में हो, परठ देना चाहिये और हाथ आदि को पानी से धो लेना चाहिये। उद्गाल गिलने का प्रायश्चित्त
२९. जे भिक्खू राओ वा वियाले वा सपाणं सभोयणं उग्गालं उग्गिलित्ता पच्चोगिलइ, पच्चोगिलंतं वा साइज्जइ ।
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