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[निशीथसूत्र करना सम्भव न हो तो भी तीसरे दिन का उल्लंघन तो नहीं करना चाहिये, अन्यथा प्रायश्चित्त का पात्र होता है।
गच्छनायक का या वहां जो प्रमुख साधु हो उसी का यह कर्त्तव्य है और वही प्रायश्चित्त का पात्र है।
आने वाला साधु ख्याति सुनकर आलोचना-(शुद्धि) के लिये, ज्ञानप्राप्ति के लिये, संघ के कार्य के लिए या उपसम्पदा के लिये भी पा सकता है। पूछताछ न करने से उसकी श्रद्धा में परिवर्तन होना, अपयश होना आदि सम्भव होता है । अतः प्रमुख साधु को इस कर्तव्य का विवेकपूर्वक पालन करना चाहिये। कलह करके प्राये हुए भिक्षु के साथ आहार करने का प्रायश्चित्त
१४. जे भिक्खू साहिगरणं, अविओसविय-पाहुडं, अकड-पायच्छित्तं, परं तिरायाओ विप्फालिय अविप्फालिय संभुजइ, संभुजंतं वा साइज्जइ।
१४. जिसने क्लेश करके उसे उपशान्त नहीं किया है, उसका प्रायश्चित्त नहीं किया है, उससे पूछताछ किये बिना या पूछताछ करके भी जो भिक्षु उसके साथ तीन दिन से अधिक आहार-सम्भोग रखता है या रखने वाले का अनुमोदन करता है (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त प्राता है।)
विवेचन-बृहत्कल्पसूत्र उद्देशक ४ में बताया गया है कि किसी साधु का किसी साधु के साथ क्लेश हो गया हो तो उसे उपशान्त किये बिना या आलोचना प्रायश्चित्त किये बिना गोचरी आदि किसी भी कार्य के लिये बाहर जाना नहीं कल्पता है ।
इस प्रायश्चित्तसूत्र से यह फलित होता है कि क्लेशयुक्त भिक्षु यदि पूछताछ आदि कर लेने के बाद भी उपशान्त नहीं होता है, प्रायश्चित्त ग्रहण नहीं करता है तो तीन दिन के बाद उसके साथ आहार आदि करने का व्यवहार नहीं रखा जा सकता ।
तीन दिन के बाद जो उसके साथ आहार का आदान-प्रदान करते हैं वे प्रायश्चित्त के पात्र होते हैं।
यहाँ व्याख्याकार ने क्लेश उत्पत्ति के अनेक कारण कहे हैं और अनुपशान्त भिक्षु को उपशांत करने के अनेक उपाय भी कहे हैं । इन उपायों को न करके उनकी उपेक्षा करने से होने वाली अनेक हानियों को एक रोचक दृष्टान्त से समझाया गया है। विपरीत प्रायश्चित्त कहने एवं देने का प्रायश्चित्त
१५. जे भिक्खू उग्घाइयं अणुग्घाइयं वयइ, वयंतं वा साइज्जइ । १६. जे भिक्खू अणुग्घाइयं उग्घाइयं वयइ, वयंतं वा साइज्जइ । १७. जे भिक्खू उग्घाइयं अणुग्धाइयं देइ, देंतं वा साइज्जइ । १८. जे भिक्खू अणुग्घाइयं उग्घाइयं देइ, देंतं वा साइज्जइ ।
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