________________
नवम उद्देशक
[१९५ २१-२५---राजा के अधिकारी व कर्मचारी आदि के निमित्त निकाला आहार ग्रहण करे ।
इत्यादि प्रवृत्तियां करने पर गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।
उपसंहार-इस नवम उद्देशक में राजपिंड व राजा से सम्बन्धित अनेक प्रसंगों का ही प्रायश्चित्त कथन है।
दशवै. अ. ३ में राजपिंड ग्रहण को अनाचार कहा गया है तथा ठाणांग के पाचवें ठाणे में ५ कारण से राजा के अंतःपुर में प्रवेश करने का प्रापवादिक कथन है । इस तरह इस उद्देशक के प्रथम तीन सूत्रों का विषय अन्य आगमों में आया हुआ है । शेष सूत्र ४ से २७ तक के सूत्रों में अन्य आगमों में अनिर्दिष्ट विषय का कथन तथा प्रायश्चित्त है।
इस प्रकार इस उद्देशक में अन्य आगमों में अनुक्त विषय ही अधिक (२४ सूत्रों में) हैं और विषय भी एक राजा सम्बन्धी है। यही इस उद्देशक की विशेषता है ।
॥ नवम उद्देशक समाप्त ॥
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org