________________
११४]
[निशीथसूत्र
६०. जो भिक्षु फिटकरी के चूर्ण से लिप्त हाथ से यावत् ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है।
६१. जो भिक्षु हरी-वनस्पति के छिलके, भूसे आदि से लिप्त हाथ से यावत् ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है ।
६२. जो भिक्षु हरी-वनस्पति के चूर्ण से लिप्त हाथ से यावत् ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है।
६३. जो भिक्षु अलिप्त--बिना खरडे-हाथ से यावत् ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है । (उसे लघुमासिक प्रायश्चित्त पाता है।)
विवेचन-सूत्र ४९ में अप्काय की विराधना, सूत्र ५० से ६० तक पृथ्वीकाय की विराधना और सूत्र ६१-६२ में वनस्पतिकाय की विराधना की अपेक्षा से ये प्रायश्चित्त कहे गये हैं । अतः यहां ये सब पदार्थ सचित्त को अपेक्षा से गृहीत हैं। यदि किसी भी प्रयोगविशेष से ये वस्तुएं शस्त्र-परिणत होकर अचित्त हो गई हों और उनसे हाथ आदि लिप्त हों तो उन हाथों से आहार ग्रहण करने का कोई प्रायश्चित्त नहीं समझना चाहिये । यथा-"उदउल्लं" गर्म पानी से भी गीले हाथ हो सकते हैं । नमक कभी अचित्त भी हो सकता है इत्यादि । इसी प्रकार सर्वत्र समझ लेना चाहिये ।
सूत्र ६३ में पश्चातकर्म की अपेक्षा प्रायश्चित्त कहा गया है। यदि पश्चातकर्म दोष न हो ऐसा खाद्य पदार्थ हो अथवा दाता विवेक वाला हो जो पश्चात्कर्म दोष न लगावे तो असंसृष्ट हाथ आदि से भिक्षा लेने का प्रायश्चित्त नहीं है । दशवै-अ. ५ उ. १ गा. ३५ में कहा है-पच्छाकम्मं जहि भवे' अर्थात् जहां पश्चात्कर्म हो ऐसा दिया जाता हुअा आहार भिक्षु ग्रहण न करे।
प्राचा. श्र. २ अ. १ उ. ११ में सात पिंडैषणा में प्रथम पिंडैषणा अभिग्रह का कथन है। उस अभिग्रह को धारण करने वाला भिक्षु असंसृष्ट (अलिप्त) हाथ आदि से ही भिक्षा ग्रहण करता है, संसृष्ट हाथ आदि से नहीं । इस प्रतिज्ञा वाला भिक्षु लेप्य अलेप्य दोनों प्रकार के खाद्य पदार्थ ग्रहण कर सकता है क्योंकि केवल अलेप्य (रूक्ष) पदार्थ ग्रहण करने की 'अलेपा' नामक चौथी पिंडैषणा (प्रतिज्ञा) कही है । अतः यह असंसृष्ट का प्रायश्चित्त उपयुक्त अपेक्षा से है, ऐसा समझना आगम सम्मत है। शब्दार्थ-१. “मट्टिया"-साधारण मिट्टी-चिकनी मिट्टी, काली मिट्टी लाल मिट्टी आदि जो
कच्चे मकान बनाने, बर्तन मांजने-साफ करने, घड़े आदि बर्तन बनाने के काम में
आती है। २. "ऊस" साधारण भूमि पर अर्थात् ऊषर भूमि पर खार जमता है, उसे खार या 'पांशु
खार' कहते हैं । “ऊषः-पांशुक्षारः" । दशवै. चूणि व टीका। ३. "मणोसिल"-मैनशिल-एक प्रकार की पीली कठोर मिट्टी। ४. "गेरुय"-कठोर लाल मिट्टी। ५. "वणिय"--पीली मिट्टी-'जेण सुवण्णं वणिज्जति' । ६. "सेडिय"---सफेद मिट्टी-खडिया मिट्टी ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org