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कल्प्याकल्प्य उपाश्रय
१. बड़े - बड़े संघों में अपने प्रयोजनों को लेकर बनाये जाने वाले मकान में सन्त सतियों की अनुकूलताओं को भी लक्ष्य में रखकर नये मकान का निर्माण करवाया जाता है ।
[ निशीथसूत्र
२. साधु-साध्वियों के लिये मकान खरीद लिया जाता है ।
३. गृहस्थों एवं साधु-साध्वियों के संयुक्त उपयोग के लिये भी कहीं-कहीं मकान खरीद लिया जाता है ।
४. निर्दोष मकान में भी साधु-साध्वियों के उद्देश्य से कई प्रकार के सुधार करवाये जाते हैं या परिवर्तन परिवर्धन करवाये जाते हैं ।
५. चातुर्मास के अवसर पर श्रोताओं की सुविधा के लिये, संघ की शोभा के लिये अथवा साधुत्रों के प्रावश्यक उपयोगों के निमित्त कुछ सुधार करवाये जाते हैं ।
६. साधु-साध्वियों के उद्देश्य से सचित्त पदार्थ या अधिक वजन वाले अचित्त उपकरण स्थानान्तरित किये जाते हैं अथवा मकान की सफाई कर दी जाती है ।
इन मकानों में सूक्ष्म उद्देश्य या अल्प आरम्भ अथवा परिकर्म कार्य होने से ये गृहस्थों के उपयोग में आने के बाद या कालान्तर से कल्पनीय हो जाते हैं ।
श्राचा. श्रु. २ अ. ५ एवं ६ में साधु के लिये खरीदे गये वस्त्र - पात्र को गृहस्थ के उपयोग में आने के बाद कल्पनीय कहा गया है। प्र. २ उ. १ में साधु के लिये किये गये अनेक प्रकार के प्रारम्भ एवं परिकर्म युक्त मकान भी गृहस्थ के उपयोग में आने के बाद कल्पनीय कहे हैं, इत्यादि आगम प्रमाणों के आधार से ही यहां उक्त मकानों को कालान्तर से कल्पनीय होना बताया गया है ।
सारांश यह है - १. जिन मकानों के निर्माण एवं परिकर्म में साधु-साध्वी का किंचित् भी निमित्त नहीं है, वे पूर्ण कल्पनीय होते हैं । २. जिन मकानों के निर्माण में मुख्य उद्देश्य साधुसाध्वी का होता है, वे पूर्ण अकल्पनीय होते हैं । ३. जिन मकानों के निर्माण में साधु-साध्वियों का मुख्य लक्ष्य न होकर उनकी अनुकूलताओं का लक्ष्य रखा गया हो या उनके निमित्त सामान्य या विशेष परिकर्म [ सुधार ] आदि किये गये हों तो वे मकान अकल्पनीय होते हुए भी कालान्तर से या गृहस्थ के उपयोग आ जाने से कल्पनीय हो जाते हैं । - श्राचा. श्रु. २ . २ उ. १ ।
पाट
सदोष - निर्दोष उपाश्रय के विकल्पों की जानकारी होने के साथ पाट सम्बन्धी विकल्पों की जानकारी होना भी आवश्यक है । क्योंकि कई उपाश्रयों में सोने बैठने के लिये पाट भी रहते हैं, उन पाटों के सम्बन्ध में भी तीन विकल्प होते हैं
१. निर्दोष, २. सदोष, ३. अव्यक्तदोष ।
निर्दोष पाट-- कई प्रान्तों में प्रचलित परिपाटी के अनुसार गृहस्थों के घरों में, सामाजिक कार्यों के मकानों में, पाठशालाओं में तथा पुस्तकालयों आदि में श्रावश्यकतानुसार पाट बनाये जाते हैं। वे कभी उपाश्रय में भेंट दे दिये जाते हैं ।
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