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पांचवां उद्देशक ]
[ १.४३
२. कई गांवों में मकोड़े, बिच्छू आदि जीवों के उपद्रव के कारण श्रावक-श्राविकाओं के सामायिक, पोषध, प्रतिक्रमण आदि करते समय उपयोग में लेने के लिये कई पाट बनवाये जाते हैं । ये उक्त दोनों प्रकार के पाठ पूर्ण शुद्ध हैं ।
सदोष पाट - १. सन्त-सतियों के बैठने या शयन करने के लिये अथवा व्याख्यान वांचते समय बैठने के लिये छोटे-बड़े पाट बनवाये जाते हैं ।
२. कई जगह साधु और गृहस्थ दोनों के उपयोग में लेने के लिये पाट बनवाये जाते हैं । ३. बने हुए पाट साधु-साध्वियों के उद्देश्य से खरीदकर उपाश्रय में भेंट किये जाते हैं । ये 'साधु के उद्देश्य से खरीदे या बनाये गये पाट हैं ।
अव्यक्त दोष वाले पाट - १. विवाह आदि के विशेष अवसरों पर पाट बनवाकर भेंट दिये जाते हैं, उस समय उपाश्रय में आवश्यक है या नहीं इसका कोई विचार नहीं किया जाता है ।
२. मेरा नाम उपाश्रय में रहे इसके लिये पाट ही देना विशेष उपयुक्त है, ऐसे विचार से भी उपाश्रयों में पाट भेंट किये जाते हैं ।
ये निरुद्देश्य या अव्यक्त उद्देश्य से बनाये गये पाट हैं ।
पाट आदि संस्तारकों के सम्बन्ध में औद्देशिकादि गुरुतर दोषों का कथन करने वाले श्रागमपाठ नहीं मिलते हैं तथा किस दोष वाला पाट कब तक प्रकल्प्य रहता है और कब कल्प्य हो जाता है, इस प्रकार का स्पष्ट कथन करने वाले पाठ भी उपलब्ध नहीं होते हैं ।
प्राचा. श्र. २ . २ उ. ३ में पाट से सम्बन्धित जो पाठ है । उसका सार यह है कि साधुसाध्वी पाट ग्रहण करना चाहें तो उन्हें यह ध्यान रखना आवश्यक है
१. उसमें कहीं जीव जन्तु तो नहीं है ।
२. गृहस्थ उसे पुनः स्वीकार कर लेगा या नहीं ।
३. अधिक भारी तो नहीं है ।
४. जीर्ण या अनुपयोगी तो नहीं है, इत्यादि ।
यदि वह पाट जीवरहित, प्रातिहारिक, हल्का एवं स्थिर ( मजबूत ) है तो ग्रहण करना चाहिये अन्यथा नहीं लेना चाहिये ।
इसके अतिरिक्त पाठ से सम्बन्धित दोषों का कथन आगमों में उपलब्ध नहीं है । पाट आदि के निर्माण में केवल परिकर्म कार्य ही किये जाते हैं जो मकान के पुरुषान्तरकृत कल्पनीय दोषों से अत्यल्प होते हैं । अर्थात् इनके बनने में अग्नि, पृथ्वी आदि की विराधना तो सर्वथा नहीं होती है । लकड़ी भी सूखी होती है अतः वनस्पति की भी विराधना नहीं होती है । अप्काय की विराधना भी प्रायः नहीं होती है । अतः प्रधाकर्मादि दोषों की इसमें सम्भावना नहीं है । अतः इनके बनाने में केवल परिकर्म दोष या क्रीतदोष ही होता है ।
कीत मकान या परिकर्म दोष युक्त मकान के कल्पनीय होने के समान ही इन उक्त सभी दोषों वाले पाटों को भी कालान्तर से कल्पनीय समझ लेना चाहिये ।
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