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[निशीथसूत्र
"नो अण्णमण्णस्स कायं आलिगेज्ज वा विलिंगेज वा, चुबेज्ज वा, दंतेहिं वा, पहेहि वा आछिदेज्ज वा विच्छिदेज्ज वा।"
अतः यहां पर सभी शब्द मूल पाठ में रखे हैं । आलिंगन आदि क्रियाएं केवल मोह वश की जाती हैं, जब कि नख आदि से छेदन क्रिया मोह एवं कषाय वश भी की जाती है। भक्त-पान आदान-प्रदान-प्रायश्चित्त
८६. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए असणं वा, पाणं बा, खाइमं वा साइमं वा देइ, देतं वा साइज्जइ।
८७. जे भिक्खू नाउग्गामस्स मेहुणवडियाए असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा पडिच्छइ, पडिच्छंतं वा साइज्जइ।
८८. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए वत्थं वा पडिग्गहं वा कंबलं वा पायपुछणं वा देइ, देंतं वा साइज्जइ।
८९. जे खिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए वत्थं वा, पडिग्गहं वा, कंबलं वा, पायछणं वा पडिग्गाहेइ, पडिग्गहावेंतं वा साइज्जइ ।
८६. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से उसे अशन पान खाद्य या स्वाद्य देता है या देने वाले का अनुमोदन करता है।
८७. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से उससे प्रशन पान खाद्य या स्वाद्य ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है ।
८८. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से उसे वस्त्र, पात्र, कंबल या पादपोंछन देता है या देने वाले का अनुमोदन करता है।
८९. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से उससे वस्त्र पात्र कंबल या पादपोंछन ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है ।
(उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।) वाचना देने-लेने का प्रायश्चित्त
९०. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए सज्झायं वाएइ, वाएंतं वा साइज्जइ । ९१. जे भिक्खू माउग्गामस्स मेहुणवडियाए सज्झायं पडिच्छइ, पडिच्छंतं वा साइज्जइ ।
९०. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से सूत्रार्थ की वाचना देता है या वाचना देने वाले का अनुमोदन करता है ।
९१. जो भिक्षु स्त्री के साथ मैथुन सेवन के संकल्प से सूत्रार्थ की वाचना लेता है या वाचना लेने वाले का अनुमोदन करता है।
(उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।)
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