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नतम उद्देशक
राजपिंड-ग्रहण-प्रायश्चित्त
१. जे भिक्खू रायपिडं गिण्हइ, गिण्हतं वा साइज्जइ । २. जे भिक्खू रायपिडं भुजइ, भुजंतं वा साइज्जइ । १. जो भिक्षु राजपिंड ग्रहण करता है या ग्रहण करने वाले का अनुमोदन करता है।
२. जो भिक्षु राजपिंड भोगता है या भोगने वाले का अनुमोदन करता है। (उसे गुरुचोमासी प्रायश्चित्त पाता है।)
विवेचन-रापिंड आठ प्रकार का होता है--१. अशन, २. पान, ३. खाद्य, ४. स्वाद्य, ५. वस्त्र, ६. पात्र, ७. कंबल, ८. पादपोंछन । भाष्य गाथा २५०० ।
प्रथम व अंतिम तीर्थंकर के शासन में राजपिंड निषिद्ध है। मध्यकालीन तीर्थंकरों के शासन में और महाविदेह क्षेत्र में निषिद्ध नहीं है। अंतःपुर-प्रवेश व भिक्षाग्रहण प्रायश्चित्त
३. जे भिक्खू रायंतेपुरं पविसइ, पविसंतं वा साइज्जइ ।
४. जे भिक्खू रायंतेपुरियं वदेज्जा “आउसो रायंतेपुरिए ! णो खलु अम्हं कप्पइ रायंतेपुरं णिक्खमित्तए वा, पविसित्तए वा, इमं णं तुमं पडिग्गहं गहाय रायंतेपुराओ असणं वा, पाणं वा, खाइमं वा, साइमं वा अभिहडं आहटु दलयाहि", जो तं एवं वयइ वयंतं वा साइज्जइ ।
५. जे भिक्खू नो वएज्जा रायंतेपुरिया वएज्जा “आउसंतो समणा ! णो खलु तुझं कप्पइ रायंतेपुरं णिक्खमित्तए वा पविसित्तए वा, आहरेयं पडिग्गहं अंतो अहं रायंतेपुराओ असणं वा, पाणं 'वा, खाइमं वा, साइमं वा अभिहडं आहटु दलायामि", जो तं एवं वयंति पडिसुणइ, पडिसुणंतं वा साइज्जइ।
३. जो भिक्षु राजा के अंतःपुर में प्रवेश करता है या प्रवेश करने वाले का अनुमोदन करता है।
४. जो भिक्षु राजा की अंत:पुरिका से कहे कि "हे आयुष्मती रायंतेपुरिके ! हमें राजा के अंतःपुर में प्रवेश करना या निकलना नहीं कल्पता है, इसलिए तुम यह पात्र लेकर राजा के अंतःपुर में से अशन, पान, खाद्य या स्वाद्य यहां लाकर दे दो", जो उसको इस प्रकार कहता है या कहने वाले का अनुमोदन करता है । , ५. यदि भिक्षु न कहे किन्तु अंतःपुरिका कहे कि "हे आयुष्मन् श्रमण ! तुम्हें राजा के अंत:
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