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नवम उद्देशक ]
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के लिये निकलता है या प्रवेश करता या निकलने वाले का या प्रवेश करने वाले का अनुमोदन करता है । (उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है ।)
छः दोषस्थान ये हैं
१. कोष्ठागारशाला,
३. पानशाला,
५. गंजशाला,
२. भाण्डागारशाला, ४. क्षीरशाला,
६. महानसशाला ।
विवेचन - राजधानी आदि में प्रवेश करने के बाद भिक्षा के लिये जाने वाले साधु को शय्यातर एवं स्थाप्य कुल के समान सर्वप्रथम राजा के इन ६ स्थानों की जानकारी कर लेनी चाहिये । क्योंकि ये छहों दोषों के स्थान हैं । ४-५ दिन में उक्त छह स्थानों की जानकारी न करे और भिक्षार्थ चला जाए तो उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त प्राता है ।
विशेष शब्दों की व्याख्या
१. कोट्ठागार - धान्य, मेवा आदि का कोठार ।
२. भंडागार - सोना, चांदी, रत्न आदि धन का भंडार ।
३. पाण- - "सुरा - मधु-सीधु - खंडग-मच्छंडिय - मुद्दिया पभिईण पाणगाणि ।" मद्यस्थान आदि । ४. 'खीर' - खीरघरं, जत्थ खीरं दधि-णवणीयं- तक्कादि अच्छंति - दूध, दही, घी आदि का स्थान ।
५. 'गंज' - " जत्थ धण्णं दभिज्जति सा गंजसाला ।
जत्थ सणसत्तरसाणि धण्णाणि कोट्टिज्जंति” – जहां सत्रह प्रकार के धान्य कूटे जाते हैं, वह स्थान ।
६. 'महाणस' -- उवक्खडणसाला - रसोईघर ।
- इन स्थानों की जानकारी न होने पर वहां भिक्षु भिक्षार्थ पहुंच सकता है । उन स्थानों के रक्षक पुरुष यदि भद्र हों तो राजपिंड ग्रहण करने का दोष लगता है और प्रतिकूल हों तो चोर आदि समझ कर वे कष्ट भी दे सकते हैं। गिरफ्तार कर सकते हैं
'जे रक्खगा ते भद्द पंता, भद्देसु रायपडदोसा, पंतेसु गेण्हणादयो दोसा' चूर्णि । अतः इन स्थानों की जानकारी करना आवश्यक है ।
राजा श्रादि को देखने के लिए प्रयत्न करने का प्रायश्चित्त-
८. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं आगच्छमाणाणं वा णिग्गच्छमाणाणं वा पयमवि चक्खुदंसण - वडियाए अभिसंधारेइ, अभिसंधारेंतं वा साइज्जइ ।
९. जे भिक्खू रण्णो खत्तियाणं मुदियाणं मुद्धाभिसित्ताणं इत्थीओ सव्वालंकार - विभूसियाओ पवि चक्खुदंसण- वडियाए अभिसंधारेइ, अभिसंधारेंतं वा साइज्जइ ।
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